नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि एक परेशान करने वाला पैटर्न उभर रहा है, जहां कुछ मामलों में आरोपी आपराधिक आरोपों से बचने के लिए बलात्कार पीड़िता से शादी कर लेता है और एफआईआर रद्द होने या जमानत मिलने के बाद तुरंत उसे छोड़ देता है. चौंकाने वाली बात ये है कि ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां आरोपी धोखे से शादी कर लेता है. खासकर जब पीड़िता संबंध बनाने पर गर्भवती हो जाती है और बाद में डीएनए परीक्षण से आरोपी के जैविक पिता होने की पुष्टि होती है.
कोर्ट ने आगे कहा कि विवाह संपन्न होने और उसके बाद आपराधिक अभियोजन से छूट मिलने पर आरोपी कुछ ही महीनों के भीतर पीड़िता को बेरहमी से छोड़ देता है. न्यायमूर्ति स्वर्णकांता शर्मा ने धारा 363/366ए के तहत 2021 में दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज की गई एक एफआईआर को रद्द करने से इनकार करते हुए ये टिप्पणियां कीं.
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अभियोजन पक्ष के अनुसार 17 वर्षीय पीड़िता की ट्यूशन क्लास में पढ़ने के दौरान 20 वर्षीय आरोपी से मुलाकात हुई थी. उसने आरोप लगाया कि आरोपी ने उसे नशीला पदार्थ दिया और एक गेस्ट हाउस में उसकी सहमति के बिना उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए. आरोप है कि युवक ने उसे ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया कि वह उसकी गलत तस्वीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट कर देगा और इस धमकी के तहत उसने कई बार उसके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाए.
जब पीड़िता को अप्रैल 2021 में पता चला कि वह गर्भवती है तो उसने अपनी मां को बताया. आरोपी ने कथित तौर पर पीड़िता और उसकी मां दोनों को धमकी दी. आरोप है कि उसने पीड़िता से शादी के लिए दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव डाला और उसके बाद पीड़िता के साथ किराए के मकान में रहने लगा. आरोप है कि शादी के बाद भी दुर्व्यवहार जारी रहा. एफआईआर दर्ज होने के बाद गर्भपात करा दिया गया.
एफआईआर रद्द करने की मांग करते हुए, आरोपी के वकील ने तर्क दिया कि यह प्रेम संबंध और दोनों पक्षों के बीच सहमति से बने रिश्ते का मामला था. दोनों पक्षों ने अपनी मर्जी से एक-दूसरे से शादी की थी. पीड़ित का परिवार लगातार आरोपी से संपर्क में है. यह भी तर्क दिया गया कि चूंकि दोनों पक्ष मुस्लिम हैं, इसलिए वे अपने व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित होते हैं. यह तर्क दिया गया कि मुस्लिम कानून के अनुसार, दोनों पक्षों के बीच विवाह वैध है क्योंकि पीड़िता पहले ही 15 वर्ष की हो चुकी है.
हालांकि, अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि पीड़िता ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज अपने बयान में मामले का समर्थन किया है. आरोपी द्वारा पीड़िता के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाए गए थे, जिसका उल्लेख सीआरपीसी की धारा 164 के तहत बयान में किया गया है और एफआईआर में कोर्ट को बताया गया.
न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा कि यह प्रथम दृष्टया स्पष्ट है कि यौन उत्पीड़न 2021 में हुआ था और पीड़िता के गर्भवती होने से उसकी मां सामाजिक बंधनों के कारण आरोपी के दबाव में आ गई थी क्योंकि वह बच्चे का जैविक पिता था. इस तर्क पर कि वर्तमान मामले में मुस्लिम पक्ष व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित होंगे और पॉक्सो अधिनियम की कोई प्रयोज्यता नहीं होगी. अदालत ने कहा कि मुद्दा यह है कि क्या एक मुस्लिम लड़की 15 साल की उम्र के बाद यौवन के अनुसार वयस्कता की आयु प्राप्त कर रही है.
पीठ ने कहा कि यह मामला पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों द्वारा शासित होगा या नहीं यह शीर्ष न्यायालय के समक्ष विचार और निर्णय के लिए लंबित है. इस प्रकार, इस बिंदु पर विरोधाभासी निर्णय है कि क्या मुस्लिम कानून के तहत विवाहित नाबालिग पर व्यक्तिगत कानून या पॉक्सो अधिनियम और बाल विवाह निरोधक अधिनियम के प्रावधानों द्वारा शासित किया जाएगा. किसी भी मामले में या वर्तमान मामले में बलात्कार के आरोप शादी के बाद नहीं बल्कि पार्टियों के बीच शादी से पहले के हैं और यह अदालत याचिकाकर्ता की पीड़िता के साथ शादी की वैधता के पहलू पर नहीं जा रही है.
अदालत ने आगे कहा कि भले ही यौन संबंध नाबालिग की सहमति से हुआ हो, जिससे वह पूरी तरह इनकार करती है. फिर भी एफआईआर को रद्द करने का कोई आधार नहीं बनता है क्योंकि नाबालिग की सहमति का यौन संबंध के उद्देश्य के लिए कोई महत्व नहीं था. वर्तमान मामले में नाबालिग पीड़िता विशेष रूप से इस बात से इनकार करती है कि यौन संबंध उसकी सहमति से बनाए गए थे.
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