नई दिल्ली:दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे एक कैदी की मामले की सुनवाई की. इस दौरान कोर्ट ने कहा कि कैदियों को संतानोत्पत्ति का अधिकार है, इसलिए एक कैदी को चार हफ्ते के पेरोल का रिहा किया जाए. जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा की बेंच ने यह आदेश दिया है.
कोर्ट ने सुनावाई के दौरान कहा कि भारतीय अदालतों ने हमेशा ही इस बात से इनकार किया है कि कैदियों को कोई मौलिक अधिकार नहीं है. लेकिन, संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत कैदियों को संतानोत्पत्ति का मौलिक अधिकार है. कोर्ट ने साफ किया कि यह अधिकार संपूर्ण नहीं है लेकिन यह विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है. जैसे कैदी के माता-पिता की स्थिति, उसकी उम्र इत्यादि पर निर्भर करता है. कोर्ट ने कहा कि कैदियों को दोषी करार देना सजा नहीं है बल्कि ये एक सुधार प्रक्रिया है.
दरअसल, 2007 में हुए हत्या के मामले में कैदी कुंदन सिंह को उम्रकैद की सजा मिल चुकी है. कुंदन सिंह इस मामले में 14 साल से ज्यादा की सजा काट चुका है. उनकी उम्र 41 साल है. जबकि, उसकी पत्नी की उम्र 38 साल है. कुंदन सिंह की पत्नी ने 27 मई को दिल्ली सरकार से संतानोत्पत्ति के लिए उसे पेरोल पर रिहा करने की मांग की थी. दिल्ली सरकार ने दिल्ली प्रिजन रुल्स का हवाला देकर कुंदन सिंह को पेरोल पर रिहा करने की अर्जी ठुकरा दिया था.
दिल्ली सरकार की ओर से अर्जी ठुकराने के बाद कुंदन सिंह की पत्नी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. उनके वकील ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता आईवीएफ तकनीक के जरिए बच्चा पैदा करना चाहता है. तब हाईकोर्ट ने कहा कि दिल्ली प्रिजन रुल्स में संतानोत्पत्ति के लिए पेरोल पर रिहा करने का प्रावधान नहीं है. एक संवैधानिक अदालत कैदी के संवैधानिक अधिकार के पक्ष में फैसला दे सकती है. कोर्ट ने कुंदन सिंह को 20 हजार रुपए के मुचलके पर चार हफ्ते के लिए पेरोल पर रिहा करने का आदेश दिया है.