नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार को विभिन्न कानूनों के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया. इस मामले में उपस्थित वकील द्वारा यह सूचित करने के बाद कि उच्चतम न्यायालय ने एक ही मुद्दे से संबंधित विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित सभी याचिकाओं को अपने पास स्थानांतरित कर लिया है, मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने यह आदेश पारित किया.
शीर्ष अदालत के 6 जनवरी के आदेश को देखते हुए, उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने अपनी रजिस्ट्री को मामले की फाइलों को तुरंत उच्चतम न्यायालय में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया. उच्च न्यायालय विशेष विवाह अधिनियम, हिंदू विवाह अधिनियम और विदेशी विवाह अधिनियम के तहत अपने विवाह को मान्यता देने की मांग करने वाले कई समलैंगिक जोड़ों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है. इस मामले में हाई कोर्ट में आठ याचिकाएं दायर की गई हैं.
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शीर्ष अदालत की पांच-जजों की संविधान पीठ ने 6 सितंबर, 2018 को दिए गए एक सर्वसम्मत निर्णय में कहा था कि निजी स्थानों पर वयस्क समलैंगिकों या विषमलैंगिकों के बीच सहमति से यौन संबंध अपराध नहीं है और ब्रिटिश-युग के दंड कानून का एक हिस्सा है, जिसने इसे इस आधार पर अपराधी बना दिया था कि यह समानता और सम्मान के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करता है. याचिकाकर्ता अभिजीत अय्यर मित्रा और तीन अन्य ने तर्क दिया है कि शीर्ष अदालत द्वारा सहमति से समलैंगिक कृत्यों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के बावजूद समलैंगिक जोड़ों के बीच विवाह संभव नहीं है और इसलिए, उन्होंने हिंदू विवाह अधिनियम और विशेष विवाह अधिनियम के तहत ऐसे विवाहों को मान्यता देने के लिए एक आदेश देने की मांग की.
दूसरी याचिका विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी करने की मांग करने वाली दो महिलाओं द्वारा दायर की गई थी. दूसरी याचिका दो पुरुषों की तरफ से दाखिल की गई थी जिन्होंने अमेरिका में शादी की थी लेकिन विदेशी विवाह अधिनियम के तहत उनके विवाह के पंजीकरण से इनकार कर दिया था. केंद्र ने समलैंगिक विवाह का विरोध करते हुए कहा है कि भारत में विवाह (Marriage) दो व्यक्तियों के बीच महज मिलन नहीं है, बल्कि यह जैविक पुरुष और जैविक स्त्री के बीच एक संस्था है. न्यायिक हस्तक्षेप से पर्सनल लॉ का नाजुक संतुलन पूरी तरह छिन्न-भिन्न हो जाएगा.
(इनपुटः PTI)
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