नई दिल्ली:दिल्ली पर मुगलों के अत्याचार पर विजय के प्रतीक दिल्ली फतेह दिवस का आयोजन इस बार 6 अप्रैल से 9 अप्रैल तक लाल किले पर आयोजित होगा. यह आयोजन सिख योद्धाओं द्वारा मुगल शासन के प्रतीक लाल किले पर कब्जे का प्रतीक है. सन् 1783 में हुई इस घटना को याद करते हुए फतेह दिवस का आयोजन किया जाता है. वर्ष 2014 से लगातार यह आयोजन लाल किले पर किया जाता रहा है, लेकिन कोरोना वायरस संक्रमण के चलते पिछले 3 साल से इसके आयोजन को अनुमति नहीं मिल रही थी. लेकिन इस बार दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी कार्यक्रम का आयोजन करने जा रही है.
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी से जुड़े हरमीत सिंह कालका ने बताया इस बार पंजाब से एक नगर कीर्तन चल कर दिल्ली आएगी. यह नगर कीर्तन 7 अप्रैल को दिल्ली पहुंचेगा. उन्होंने बताया कार्यक्रम में गुरु ग्रंथ साहिब में वर्णित शस्त्रों का प्रदर्शन किया जाएगा. इसके अलावा खालसा रैली का भी आयोजन होगा. लोगों को सिख इतिहास के बारे में जानकारी दी जाएगी.
सिख गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी ने शिरोमणि अकाली बुड्ढा दल पांचवा तख्त के मुखी बाबा बलबीर सिंह के साथ बैठक कर इस कार्यक्रम की रूपरेखा तय की है. कालका ने बताया कि इस बार बाबा जस सिंह रामगढ़िया की 300 जयंती भी है. साथ ही अकाल तख्त के पूर्व जत्थेदार फूला सिंह की 200 जयंती है. इस बार का दिल्ली फतेह दिवस कार्यक्रम इन्हीं दोनों योद्धाओं को समर्पित रहेगा.
क्या है दिल्ली फतेह दिवस का इतिहास:दिल्ली विश्वविद्यालय के खालसा कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर जसविंदर सिंह बताते हैं कि 11 मार्च सन् 1783 को बाबा जस्स सिंह रामगढ़िया, बाबा जस्स सिंह आहलूवालिया और बाबा बघेल सिंह के नेतृत्व में 30,000 सिख लड़ाके दिल्ली में मुगल सल्तनत के खिलाफ युद्ध लड़ने के लिए पहुंचे थे. मुगल के अत्याचारी शासन को सबक सिखाने के लिए बाबा बघेल सिंह के नेतृत्व में एक जत्था दिल्ली पहुंचा था. इस दौरान सिख योद्धाओं ने लाल किले के दीवाने आम पर कब्जा कर लिया था, जहां तत्कालीन मुगल शासक शाह आलम द्वितीय बैठते थे. इस दौरान मुगल शासक शाह आलम को सिख योद्धाओं से समझौता करना पड़ा था.
दिल्ली फतेह दिवस से जुड़े किस्से:डॉक्टर जसविंदर सिंह बताते हैं कि जिस जगह पर वर्तमान तीस हजारी न्यायालय है, वहां पर कभी बाबा बघेल सिंह के नेतृत्व में 30,000 सैनिक रुके थे, इसलिए उस जगह को तीस हजारी नाम दिया गया. उन्होंने बताया कि जिस समय सिख योद्धाओं ने दिल्ली पर हमला किया, उस समय सम्राट शाह आलम द्वितीय ने लाल किले के सभी दरवाजे बंद करा दिए थे. ताकि रसद की आपूर्ति रुक जाए और सिख सैनिक वापस चले जाए. लेकिन सौभाग्य से कुछ सिख सैनिक एक राजमिस्त्री के पास पहुंच गए, जो कि लाल किले की बाहरी दीवारों से भली-भांति परिचित था. मिस्त्री ने सिख सैनिकों को बताया कि अंदर के पास एक दीवार टूटी हुई है, जहां से किले में प्रवेश संभव है. वर्तमान समय में जहां पर मोरी गेट बस टर्मिनल है वहीं पर दीवार हुआ करती थी, जिससे सिख सैनिकों ने लाल किले के अंदर प्रवेश किया और शाह आलम द्वितीय को पराजित किया था.
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दिल्ली फतेह दिवस के बाद बने थे शीशगंज और रकाबगंज गुरुद्वारा:इतिहासकार विष्णु शर्मा बताते हैं कि लाल किले पर कब्जे के बाद सिख योद्धाओं के समक्ष शाह आलम द्वितीय संधि का प्रस्ताव रखा. इस संधि के दौरान बाबा बघेल सिंह ने गुरु तेग बहादुर जिन्हें औरंगजेब ने मृत्युदंड की सजा दी थी. उनके शहीदी स्थल पर शीश गंज गुरुद्वारा बनाने और गुरु के अंतिम संस्कार स्थल पर रकाबगंज गुरुद्वारा बनाने की शर्त रखी थी, जिसे अपमानित शाह आलम को स्वीकार करना पड़ा. विष्णु शर्मा बताते हैं कि जिस जगह पर वर्तमान में मिठाई पुल दिखाई देता है, दरअसल यह भी उसी इतिहास से जुड़ा हुआ है. लाल किले पर जीत के बाद सिख सैनिकों ने इसी पुल के पास मिठाई बाटी थी, इसीलिए उस समय से ही पुल का नाम मिठाई पुल रखा गया था. उन्होंने कहा इतिहास में ऐसी कई घटनाएं हैं जब सिख योद्धाओं ने अद्वितीय पराक्रम दिखाते हुए विरोधियों को धूल चटा दी थी, दिल्ली फतेह दिवस उन्हीं घटनाओं में से एक घटना है.
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