नई दिल्लीः किसानों के लिए केजरीवाल सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ गिनती के किसानों को ही मिल पाया है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक इस वर्ष अधिकांश किसानों की फसलें सरकारी मूल्य पर नहीं खरीदी गई. पहले की तरह जैसे किसान मंडी में अपने अनाज बेचते थे इस बार भी वैसा ही किया. इस बार में गेहूं की सरकारी खरीद से केवल 500 मीट्रिक टन की गई है. जिससे कुछ किसानों को लाभ हुआ है. यह राष्ट्रीय राजधानी में गेहूं की कुल पैदावार की 1 फीसद से भी कम है.
न्यूनतम समर्थन मूल्य के लाभ को लेकर अन्नदाता नाराज!
गत वर्ष बढ़ाया था न्यूनतम समर्थन मूल्य
बाहरी दिल्ली के बख्तावरपुर में रहने वाले किसान सुरेंद्र बताते हैं, पिछले साल सरकार ने मुख्यमंत्री किसान मित्र योजना की घोषणा की थी. इस योजना से दिल्ली सरकार को किसानों से केंद्र के न्यूनतम समर्थन मूल्य से करीब दोगुने दाम पर अनाज खरीदना था. तब दिल्ली सरकार ने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने का ऐलान किया था.
'सरकार नहीं देती सब्सिडी'
किसान दिग्विजय सिंह कहते हैं कि दिल्ली सरकार अन्य राज्यों की तरह किसानों को कोई सब्सिडी नहीं देती. जिससे बीज, खाद, ट्रैक्टर से लेकर खेती में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरण व वेयरहाउस आदि बनाने में किसानों को कमर टूट जाती है.
गेहूं व धान के लिए ये दरें हैं निर्धारित
पिछले वर्ष दिल्ली सरकार के विकास मंत्री गोपाल राय ने किसानों के पैदावार को लेकर निर्णय लिया था कि इस योजना के तहत गेहूं 2616 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से खरीदा जाएगा. जबकि धान के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य 2600 रुपये प्रति क्विंटल. इस उद्देश्य के लिए दिल्ली सरकार ने बजट आवंटन किया था.
आधिकारिक सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जमीनी स्तर पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. दिल्ली के अलीपुर गांव के निवासी हंसराज सैनी भी आस लगाए थे कि ऊंचे न्यूनतम समर्थन मूल्य से उन्हें लाभ मिलेगा. सैनी ने बताया कि सरकारी मंडियों से खरीद नहीं होने से घर में उपज खुले बाजार में बेचने को मजबूर हुए.
खुले बाजार में अनाज बेचने को मजबूर
बता दें कि दिल्ली में गेहूं और धान की जितनी उपज होती है और सरकार ने जो न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया है, उस मूल्य पर किसानों से अनाज खरीदने में वर्ष 2008 के बाद से राज्य सरकार ने रुचि नहीं दिखाई है. उसके बाद मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के कार्यकाल में 15 साल और उसके बाद आम आदमी पार्टी सरकार के कार्यकाल में भी अभी तक दिल्ली के किसान खुले बाजार में ही अनाज बेचने को मजबूर हैं.