नई दिल्ली: दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने देश में मौजूद पैरोल और छूट की नीतियों का अध्ययन शुरू किया है. आयोग विभिन्न राज्यों की सम्बंधित नीतियों का अध्ययन करेगा जिसके तहत दोषियों को सजा में छूट और पैरोल दी जाती है. इस संबंध में आयोग ने दिल्ली सरकार और तिहाड़ जेल को नोटिस जारी कर जघन्य अपराधों के दोषियों के लिए सजा में छूट और पैरोल नीतियों और दिल्ली राज्य में उनके कार्यान्वयन के बारे में जानकारी मांगी है. आयोग इस संबंध में दिल्ली सरकार के साथ-साथ भारत सरकार को एक रिपोर्ट सौंपेगा.
आयोग ने हाल के मामलों के सन्दर्भ में यह अध्ययन शुरू किया है, जिसने सिस्टम में उन खामियों को उजागर किया है, जिससे रसूखदार दोषी नीतियों में हेरफेर कर अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करते हैं. उदाहरण के लिए, 2002 में बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था (Bilkis Bano rape case) और उसके 3 साल के बेटे और परिवार के 7 अन्य सदस्यों की हत्या कर दी गई थी. अदालत ने 11 दोषियों को आजीवन कारावास की सजा देने के बावजूद, उन्हें इस साल 15 अगस्त को गुजरात सरकार ने 1992 की छूट नीति का हवाला देते हुए छोड़ दिया. जिसमें कैदियों को उनकी सजा में कमी के लिए आवेदन करने की अनुमति दी थी.
साथ ही, हाल ही में हरियाणा सरकार ने डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को पैरोल पर रिहा किया, जो बलात्कार और हत्या का दोषी है और रोहतक की जेल में उम्रकैद की सजा काट रहा है. बाद में उसने कई 'प्रवचन सभाओं' का आयोजन किया और खुद को बढ़ावा देने वाले संगीत वीडियो जारी किए, जिसमें कई वरिष्ठ सरकारी पदाधिकारियों ने भाग लिया.
स्वाति मालीवाल ने इन घटनाओं को बहुत चिंतित करने वाला करार दिया है और कहा है कि देश में सजा में छूट, पैरोल और फरलो के मौजूदा नियम और नीतियां भी बेहद कमजोर हैं. राजनेता और रसूखदार दोषि अपने फायदे के लिए इसका आसानी से दुरुपयोग कर सकतें है. इस संबंध में, आयोग की अध्यक्ष ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के गृह विभाग और तिहाड़ जेल को नोटिस जारी कर दिल्ली में सजा में छूट और पैरोल नीतियों का विवरण मांगा है.