नई दिल्ली:चुनावी वर्ष होने के बाद भी दिल्ली सरकार दिल्ली वालों के हित में काम करती नहीं दिख रही है. चालू वित्त वर्ष के बजट में जनहित के कार्यों के लिए कई मदों में करोड़ों रुपये का बजट आवंटित किया गया था, लेकिन केजरीवाल सरकार की बजट खर्च करने की रफ्तार काफी सुस्त रही है. आरटीआई और दिल्ली सरकार की वेबसाइटों से प्राप्त आंकड़े कुछ यही कहते हैं.
विजेंद्र गुप्ता से ईटीवी भारत की खास बातचीत सिर्फ 23% ही हुआ खर्च
इस बाबत जब विधानसभा में नेता विपक्ष विजेंद्र गुप्ता से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की तो उन्होंने भी कहा कि दिल्ली सरकार वर्ष 2019-20के दौरान क्रियान्वित की जाने वाली योजनाओं, परियोजनाओं और कार्यक्रमों पर बजट खर्च करने की रफ्तार बेहद सुस्त रही. अभी तक कुल बजट का 23.63 फीसद ही खर्च कर पाई सरकार
दिल्ली सरकार ने जनहित कार्यों के लिए आवंटित 27000 करोड़ रुपये में से अभी तक मात्र 6380 करोड़ रुपये ही खर्च कर पाई है. चालू वित्त वर्ष में अभी तक केजरीवाल सरकार कुल बजट का मात्र 23. 63 प्रतिशत भाग ही खर्च कर पाई है. केजरीवाल सरकार ने कई क्षेत्रों में अपना खाता तक नहीं खोल पाई है.
कई मदों में नाम मात्र का हुआ खर्च
ऊर्जा तथा पर्यटन के क्षेत्रों में सरकार क्रमशः 150 करोड़ और 49 करोड़ में से एक पैसा भी नहीं खर्च कर पाई है. श्रमिकों और उनके कल्याण से संबंधित योजनाओं पर 321 करोड़ रुपये में से मात्र 3.17 करोड़ रुपये ही व्यय हुए हैं. जो कुल आवंटन का 0.99% है. कृषि से जुड़ी हुई 163 करोड रुपए आवंटित किए गए थे. इनमें से मात्र 3.46 करोड़ रुपये ही खर्च हुए हैं. इस हिसाब से इस मद में 2.12% बजट ही व्यय हो पाया है. आवास के लिए 133 करोड़ रुपये रखे गए थे. पर अभी तक खर्च हुए हैं मात्र 10 करोड़, जो आवंटन का 7.52% है. प्रशासनिक सेवाओं के लिए 446 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. जिसे बढ़ाकर 533. 45 करोड़ कर दिया गया है. पर सरकार 20.78 करोड़ रुपये ही खर्च कर पाई है.
स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में भी हालत खराब
दिल्ली सरकार शिक्षा, स्वास्थ्य तथा परिवहन के क्षेत्र में बड़ी-बड़ी योजनाएं लागू करने का दम भरती है. लेकिन इन क्षेत्रों में भी बजट खर्च करने में सरकार फिसड्डी साबित हुई है. मेडिकल में आवंटित 2890 करोड़ रुपए को बढ़ाकर 2916 करोड़ रुपये किया गया. इसके बावजूद भी सरकार मात्र 578 करोड़ रुपये ही खर्च कर पाई. जोकि बजट का 19.82% है. जन स्वास्थ्य के क्षेत्र में हालात इससे भी बदतर हैं. बजट आवंटन 873 करोड़ से बढ़ाकर मगर सरकार अभी तक मात्र 103 करोड़ रुपये ही खर्च कर पाई हैं. सामान्य शिक्षा के लिए संशोधित आवंटन 6177 करोड़ रुपये में से मात्र 1394 करोड़ रुपये ही व्यय हुए हैं.
बजट खर्च करना बड़ी चुनौती
बता दें कि सरकार ने चुनावी वित्त वर्ष के बजट में विकास कार्यक्रमों के लिए भारी-भरकम बजट आवंटित किया था. बड़ी-बड़ी घोषणाएं की थी लेकिन सरकार बजट खर्च करने में फिसड्डी साबित हुई है. सरकार के पास योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए तकरीबन ढाई महीने का समय बचा है. इसके बाद आचार संहिता लागू हो जाएगी. अभी से चुनावी मोड में सरकार के लिए शेष कार्यकाल में 76% हिस्सा खर्च करना दूर की कौड़ी होगी.