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Dr JS Titiyal ने कहा- साल 2050 तक बच्चों की आधी आबादी को हो सकता है निकट दृष्टि रोग का खतरा - दिल्ली की ताजा खबरें

दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के डॉ जेएस तितियाल ने कहा है कि बच्चों की आंखें सुरक्षित रखने के लिए स्कूलों में प्रशिक्षण की जरूरत है. उन्होंने कहा है कि 2050 तक बच्चों की आधी आबादी को निकट दृष्टि रोग का खतरा हो सकता है.

dr js titiyal aiims
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Published : Mar 12, 2023, 1:55 PM IST

डॉ जेएस तितयाल

नई दिल्ली:देशभर में कोरोना काल के बाद, बच्चों की ऑनलाइन कक्षाएं और स्मार्टफोन और कंप्यूटर पर गेम खेलने के कारण आंखे कमजोर होने के मामले दो गुना तक बढ़े हैं. दिल्ली एम्स के एक अध्ययन के मुताबिक, दिल्ली में 11 से 15 फीसदी बच्चों को निकट दृष्टि (मायोपिया) रोग है. यह जानकारी एम्स के राजेंद्र प्रसाद नेत्र अस्पताल के प्रमुख, डॉ जेएस तितयाल ने दी. उन्होंने कहा कि, कोरोना काल से पहले हुए अध्ययनों के मुताबिक शहरी आबादी में 5 से 7 फीसदी बच्चों में निकट दृष्टि रोग मिलता था लेकिन अब ऐसे मामलों में बढ़त देखी जा रही है. स्कूल में पढ़ाई के दौरान एक घंटे का ब्रेक होना चाहिए और 2 घंटे से ज्यादा डिजिटल स्क्रीन का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं किया जाना चाहिए.

डॉ जेएस तितियाल ने कहा कि, बच्चों की आंखें सुरक्षित रखने के लिए स्कूलों में प्रशिक्षण और दिशानिर्देशों का पालन करने की जरूरत है. एम्स दिल्ली और कई अस्पताल स्कूलों में इसे लेकर जागरुकता कार्यक्रम चला रहे हैं. उन्होंने कहा कि बच्चे दिन में दो घंटे से ज्यादा डिजिटल स्क्रीन का इस्तेमाल न करें और जरूरत पड़ने पर चश्मा जरूर लगाएं. ऐसा न करने पर नजर और कमजोर हो सकती है. साथ ही पेरेंट्स को अपने बच्चों का सालभर में एक बार आंखों का चेकअप जरूर कराना चाहिए. इससे बच्चों की आंखों में के बारे में पता चल जाता है.

उन्होंने आगे बताया कि 40 से 45 साल की उम्र में आते-आते बड़ी संख्या में लोगों की आंखें कमजोर हो रही हैं लेकिन इस दौरान कुछ लोग चश्मे का इस्तेमाल नहीं करते, जिससे में वे प्रेसबायोपिया से पीड़ित हो जाते हैं. देश में इस आयु वर्ग के 1.8 करोड़ लोगों को हर साल प्रेसबायोपिया के कारण से चश्मे की जरूरत पड़ रही है. वहीं कई लोगों को बाजार में सही ग्लास का चश्मा नहीं मिल पाता है. उन्होंने बताया, निकट दृष्टि दोष को मायोपिया कहते हैं, जिसमें दूर की चीजों को स्पष्ट रूप से देखने में समस्या आती है क्योंकि आंख की पुतली (आई बॉल) का आकार बढ़ने से प्रतिबिंब थोड़ा आगे बनता है. ऐसा होने से दूर के धब्बे और अस्पष्ट दिखाई देते हैं. हालांकि पास में देखने में कोई समस्या देखने को नहीं मिलती. एक अनुमान के मुताबिक भारत की 20-30 प्रतिशत आबादी मायोपिया से पीड़ित है.

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डॉ तितियाल का कहना है कि स्मार्टफोन्स का इस्तेमाल लगातार बढ़ता जा रहा है. वहीं घर और ऑफिस में सीमित जीवन, शारीरिक सक्रियता की कमी और जंक फूड्स का सेवन हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को ही नहीं बल्कि हमारी आंखों की सेहत को भी प्रभावित कर रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, विश्व में मायोपिया के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. विश्वभर में करीब एक अरब चालीस करोड़ लोगों को निकट दृष्टि दोष है और 2050 तक यह संख्या बढ़कर पांच अरब हो जाएगी. इनमें से लगभग दस प्रतिशत लोगों की मायोपिया इतनी गंभीर होगी कि उनकी दृष्टिहीनता का खतरा अत्यधिक बढ़ जाएगा.

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