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सीएसयू का मॉरीशस सनातन धर्म टेंपल फेडरेशन से एमओयू, कला एवं संस्कृति का होगा विस्तार

सीएसयू का मॉरीशस सनातन धर्म टेंपल फेडरेशन से एमओयू कला एवं संस्कृति का विस्तार होगा. मौरिशस में वैदिक तथा कर्मकांड विद्या आदि का प्रचार प्रसार होने से दोनों देशों की समन्वित संस्कृति की जड़ें और मजबूत होगी.

एमओयू कला एवं संस्कृति का होगा विस्तार
एमओयू कला एवं संस्कृति का होगा विस्तार

By ETV Bharat Delhi Team

Published : Oct 5, 2023, 10:53 PM IST

नई दिल्ली:केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय तथा मॉरीशस सनातन धर्म टेंपल फेडरेशन द्वारा गुरुवार को एमओयू बैठक में मॉरीशस से निकट के रिश्ते की बात की गई. इस दौरान कुलपति प्रो श्रीनिवास वरखेड़ी ने मॉरीशस से निकट के संबंध की बात की. उन्होंने कहा कि मॉरीशस लघु भारत के रूप में भारतीय संस्कृति का जीवंत संवाहक तथा मनोरम देश है.

कुलपति ने कहा कि भारत का इस देश से जितना प्राचीन तथा प्रगाढ़ संबंध रहा है, उतना ही आज भी दोनों देश एक दूसरे से बहुत ही निकटता का अनुभव करते हैं. इस एमओयू से दोनों देशों की कला तथा संस्कृति का विस्तार होगा. यह बहुत ही गौरव की बात है कि मॉरीशस के अधिसंख्य निवासी अपने आप को भारतवंशी कहने में गर्व की बात करते हैं.

सीएसयू का मॉरीशस सनातन धर्म टेंपल फेडरेशन से एमओयू कला एवं संस्कृति का विस्तार होगा

कुलपति ने कहा कि सीएसयू मॉरीशस में वैदिक विद्या के उन्नयन के लिए सदा तत्पर है. इस सांस्कृतिक तथा सनातनी संबंधों की श्रीवृद्धि तथा सशक्तिकरण के लिए सीएसयू भी चाहता है कि मारिशस में वैदिक तथा कर्मकांड विद्या आदि का प्रचार-प्रसार हो, ताकि दोनों देशों की समन्वित संस्कृति की जड़ें और मजबूत हो.

मौरिशस में वैदिक तथा कर्मकांड विद्या आदि का प्रचार प्रसार होने से दोनों देशों की समन्वित संस्कृति की जड़ें और मजबूत होगी.

बता दें, मॉरीशस के छात्र-छात्राएं केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में आकर संस्कृत विद्या तथा कर्मकांड का प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे. इससे मॉरीशस में सनातन धर्म तथा भारतीय संस्कृति की जड़ें और मजबूत होगी. बैठक के दौरान प्रो बनमाली बिश्वाल, डीन एकेडमिक तथा छात्र कल्याण के प्रो रणजीत कुमार वर्मा, कुल सचिव ने भी इस संस्कृत तथा संस्कृति के ऐतिहासिक क्षणों पर अपनी प्रसन्नता अभिव्यक्त की.

प्रो. मधुकेश्वर भट्ट ने कहा कि इस तरह के शैक्षणिक तथा सांस्कृतिक करार से भारतीय ज्ञान परंपरा के उत्कर्ष के साथ वैश्विक उन्नयन में संस्कृत की भूमिका और बेहतर बन सकेगी, जो आज समय की मांग है.

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