नई दिल्ली: दिल्ली की साकेत कोर्ट ने 27 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़ कर कुतुब मीनार परिसर में बने कुव्वत-उल-इस्लाम मस्ज़िद पर दावा करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने याचिकाकर्ता से लिखित जवाब दाखिल कर ये बताने को कहा कि कैसे बिना जमीन का मालिकाना हक दिये पूजा का अधिकार दिया जा सकता. सिविल जज नेहा शर्मा ने मामले पर अगली सुनवाई 6 मार्च को करने का आदेश दिया. इस मामले पर ईटीवी भारत की टीम ने याचिकाकर्ता के वकीलों से बातचीत की.
कोर्ट से की ये मांग
याचिकाकर्ता के वकीलों ने बताया कि हमने कोर्ट से मांग की है कि वहां पर पूजा करने का अधिकार दिया जाए और इसके लिए ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया जाए. साथ ही उन्होंने कहा कि वहां पर 27 मंदिरों को तोड़कर उसके मलबे से मस्जिद को बनाया गया था. साथ ही उनका यह भी कहना था कि हिंदू जनमानस को अपमानित करने के लिए यह कृत्य किया गया था और उस सम्मान को वापस दिलाने की यहां पर पूजा का अधिकार दिया जाए.
क्या कोर्ट ट्रस्ट के गठन का आदेश दे सकता है
कोर्ट ने याचिकाकर्ता को ये बताने का निर्देश दिया कि भक्त की हैसियत से याचिका दाखिल करने का क्या औचित्य है. कोर्ट पूछा कि ये बताइए कि क्या कोर्ट ट्रस्ट के गठन का आदेश दे सकता है. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता वकील हरिशंकर जैन ने कोर्ट से कहा कि इस मामले में इस बात को लेकर कोई विवाद नहीं है कि मंदिरों को ध्वस्त किया गया था. लिहाजा इसको साबित करने की जरूरत नहीं पिछले आठ सौ से ज्यादा सालों से हम पीड़ित हैं. अब पूजा का अधिकार मांग रहे हैं, जो कि हमारा मूल अधिकार है. जैन ने कहा कि वहां पिछले आठ सौ साल से नमाज नही पढ़ी गई है. मस्जिद के तौर पर इसका इस्तेमाल ही नहीं हुआ. हरिशंकर जैन ने अपनी दलीलों के समर्थन में वहां मौजूद लौह स्तम्भ, भगवान विष्णु और दूसरे आराध्य देवी देवताओं की खण्डित मूर्तियों का हवाला दिया.
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राष्ट्रीय शर्म का विषय
सुनवाई के दौरान वकील विष्णु जैन ने कहा कि ये राष्ट्रीय शर्म का विषय है. देशी, विदेशी तमाम लोग वहां पहुचते हैं, देखते हैं कि कैसे खण्डित मूर्तियां वहां पर हैं. हमारा मकसद अब वहां किसी विध्वंस के लिए कोर्ट को आश्वस्त करना नहीं हैं. हम सिर्फ अपना पूजा का अधिकार चाहते हैं. तब जज नेहा शर्मा ने पूछा कि आप पूजा का अधिकार मांग रहे हैं. अभी जगह एएसआई के कब्ज़े में है. तो एक दूसरे तरीके से आप जमीन पर कब्ज़ा मांग रहे हैं तब हरिशंकर जैन ने कहा कि हम ज़मीन पर अपना मालिकाना हक नहीं मांग रहे हैं. बिना मालिकाना हक दिए भी पूजा का अधिकार दिया जा सकता है.
देवता और भक्त, दोनों ओर से याचिका दायर की
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पूछा कि आपके इस याचिका को दायर करने का क्या औचित्य है. किस हक से आप याचिका दायर कर रहे हैं. तब याचिकाकर्ता ने कहा था हमने देवता और भक्त दोनों ओर से याचिका दायर की है. एक भक्त की याचिका दायर करने के अधिकार को सुप्रीम कोर्ट ने भी मान्यता दी है. आप मेरे अधिकार को खारिज नहीं कर सकते हैं.