नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि मातृत्व लाभ उस महिला की पहचान और गरिमा का मौलिक और अभिन्न अंग है, जो बच्चे को जन्म देने का निर्णय लेती है. कोर्ट ने कहा अनुबंध पर काम करने वाली महिलाकर्मी को भी मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत राहत पाने का हक है. जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने आदेश में कहा कि काम करने वाली जगहों का माहौल ऐसा होना चाहिए कि अगर कोई महिला करियर और मातृत्व दोनों चुनती है तो उसे कोई एक फैसला लेने के लिए बाध्य न होना पड़े.
कोर्ट ने कहा कि संविधान महिलाओं को इस बात की आजादी देता है कि वह बच्चे को जन्म दे या नहीं दे. मातृत्व अवकाश (मैटरनिटी लीव) और लाभ का महत्व पूरी दुनिया में मान्य है. हाई कोर्ट ने कहा कि समाज में महिलाएं सुरक्षित महसूस करें, इसके लिए उन्हें अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में एक-दूसरे पर प्रभाव डाले बिना फैसले लेने में सक्षम होना चाहिए.
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काम का माहौल इतना अनुकूल होना चाहिए कि एक महिला के लिए व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन के संबंध में बिना किसी बाधा के फैसला लेना सरल हो और जो महिला करियर और मातृत्व दोनों चुनती है, उसे किसी एक फैसले को लेने के लिए मजबूर नहीं किया जाए. हाई कोर्ट ने ये अहम टिप्पणियां दिल्ली राज्य विधिक सेवाएं प्राधिकरण (डीएसएलएसए) में अनुबंध पर काम करने वाली महिला वकील की याचिका पर सुनवाई करते हुए कीं. महिला ने मातृत्व लाभ का अनुरोध खारिज होने के बाद हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
यह था मामला
दिल्ली राज्य विधिक सेवाएं प्राधिकरण (डीएसएलएसए) की ओर से जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के पैनल में अनुबंध पर अधिवक्ता के रूप में कार्यरत महिला ने अक्टूबर 2017 के अंत में गर्भधारण किया और उसके बाद उसने डीएसएलएसए में मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन किया. डीएसएलएसए द्वारा उसका मातृत्व आवेदन यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि अनुबंधित कर्मचारी को डीएसएलएसए में मातृत्व अवकाश नहीं दिया जाता है.