नई दिल्ली: केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ विपक्षी दलों का समर्थन हासिल करने की कोशिश में जुटी आम आदमी पार्टी (AAP) को अभी तक कांग्रेस की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है. आप के नेता जिस तरह से कांग्रेस के खिलाफ मुखर हो रहे हैं, उससे कयास लगाए जा रहे हैं कि पार्टी अब समझौते के मूड में आ गई है. इस बाबत पूछे गए सवाल के जवाब में दिल्ली सरकार के मंत्री सौरभ भारद्वाज ने कहा कि "कांग्रेस दिल्ली-पंजाब को छोड़ दे, हम मध्य प्रदेश और राजस्थान में चुनाव नहीं लड़ेंगे".
हालांकि, सौरभ भारद्वाज का यह ऑफर इन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर है. इस पर कांग्रेस नेता का कहना है उक्त दोनों ही राज्यों में कांग्रेस मजबूत है और आम आदमी पार्टी यहां कहीं नहीं दिख रही है.
कांग्रेस की प्रवक्ता ने दी कड़ी प्रतिक्रिया:आम आदमी पार्टी की तरफ से दिए गए इस ऑफर को लेकर कांग्रेस प्रवक्ता अलका लांबा ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. लांबा ने कहा कि आम आदमी पार्टी के नेता महाठग फॉर्मूला सूझा रहे हैं. 2019 में दिल्ली की सात लोकसभा सीट और पंजाब की 13 लोकसभा सीटों को मिलाकर कुल 20 सीटों में से कांग्रेस को 8 सीटें मिली थीं. जबकि आम आदमी पार्टी को पंजाब और दिल्ली मिलाकर सिर्फ एक सीट मिली.
AAP को लोकसभा चुनाव में नकार चुकी है जनता:अलका लांबा का कहना है कि लोकसभा और विधानसभा के चुनावों में अंतर होता है. आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में नकारा जा चुका है. उन्होंने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को सुझाव देते हुए कहा कि आम आदमी पार्टी से एकदम सावधान रहना होगा. इनका इतिहास बीजेपी को लाभ और सदा से कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने वाला रहा है.
AAP को कांग्रेस का समर्थन इसलिए है जरूरी:आम आदमी पार्टी (आप) को अध्यादेश के मुद्दे पर समर्थन देने को लेकर तकरीबन अधिकांश विपक्षी दलों ने नेता सामने आए हैं. लेकिन केंद्र सरकार जब राज्यसभा में इस अध्यादेश को पास कराने के लिए पेश करेगी, इसे तभी रोका जा सकता है, जब सभी विपक्षी दल इसके खिलाफ वोट करेंगे. राज्यसभा में अभी विपक्षी दलों में कांग्रेस के पास सबसे अधिक 31 सीटें हैं. इसलिए बगैर कांग्रेस को साथ लिए आम आदमी पार्टी अध्यादेश को राज्यसभा से पारित होने से नहीं रोक सकती है.