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कोरोना के बाद Avascular Necrosis का खतरा, गल रहीं हड्डियां, जानिए क्या है इलाज

कोरोना से ठीक होने के बाद कहीं आपकी हड्डियों में तो नहीं हो रहा दर्द ? पोस्ट कोविड मरीजों में एवैस्कुलर नेक्रोसिस (Avascular Necrosis And Bone Death Cases In Post Covid Patients) यानी बोन डेथ के कुछ मामले सामने आ रहे हैं.

Complaints of avascular necrosis and bone death in post covid patients
पोस्ट कोविड

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Published : Jul 8, 2021, 8:07 PM IST

नई दिल्ली :कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों में अलग-अलग समस्याएं देखने को मिल रही हैं. म्यूकोरमाइक्रोसिस के बाद अब मरीजों में हड्डियों में दर्द की समस्या आ रही है. कोरोना से रिकवर होने के बाद मरीजों की हड्डियां गलना या बॉन डेथ (Avascular Necrosis And Bone Death Cases In Post Covid Patients) के मामले सामने आ रहे हैं. यह किस तरीके की परेशानियां हैं और इसके पीछे क्या कारण हैं. क्या कुछ सावधानियां हैं. इसको लेकर ईटीवी भारत ने ESI Hospital के सीनियर रेजिडेंट ऑर्थोपेडिक डॉक्टर रोहन कृष्णन से जानकारी ली.

डॉक्टर रोहन ने बताया कि कोरोना का म्यूटेशन अलग-अलग तरीके से लोगों पर असर कर रहा है. मौजूदा समय में जो मामले सामने आ रहे हैं, उसमें हड्डियां गलना या Bone Death है, जिसे मेडिकल भाषा में एवैस्कुलर नेक्रोसिस कहा जाता है.

कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों में अलग-अलग समस्याएं देखने को मिल रही हैं

इसके मामले जो सामने आ रहे हैं, उसमें यह देखा गया है कि लाइफ सेविंग ड्रग्स यानी स्टेरॉयड की मात्रा अधिक होने पर मरीजों में Avascular Necrosis की समस्या आ रही है, जिसमें हड्डियां गलना और हड्डियों में दर्द की परेशानी देखी जा रही है.

डॉ. रोहन ने बताया एवैस्कुलर नेक्रोसिस (Avascular Necrosis) एक ऐसी बीमारी है, जिसमें हड्डियों तक खून पहुंचना बंद हो जाता है, जिसके चलते हड्डियां गलने लगती है, जिसे Bone Death भी कहते हैं. अधिकतर एवैस्कुलर नेक्रोसिस के मामले कूल्हे की हड्डियों में देखने को मिलते हैं, जिसमें कूल्हे की हड्डियां पूरी तरह गल जाती हैं. कई बार इन हड्डियों को ट्रांसप्लांट करने की भी आवश्यकता पड़ती है.

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डॉक्टर ने बताया कि ज्यादातर इस बीमारी के मामले इलाज में दी जाने वाली स्टेरॉयड के 7 से 8 महीने बाद देखने को मिलते हैं, लेकिन अब देखा जा रहा है कि 2 महीने बाद भी मरीज एवैस्कुलर नेक्रोसिस से पीड़ित हो रहे हैं. डॉक्टर ने बताया कि इस बीमारी का इलाज केवल यही है कि शुरुआती लक्षणों में ही इस बीमारी पर लगाम लगाई जा सके. इसका इलाज सही समय पर शुरू किया जाए, तभी इस बीमारी को रोका जा सकता है.

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डॉ. रोहन ने बताया कि यह बीमारी हर एक वर्ग के लोगों को अपनी चपेट में ले रही है. युवा वर्ग के लोग भी इससे अछूते नहीं हैं, 30 से 50 आयु वर्ग के लोग भी इसकी चपेट में आ रहे हैं. ऐसे में इसके लक्षणों को ध्यान से समझने की आवश्यकता है. यदि आपको कूल्हे, हिप, जांघ या पैरों की हड्डियों में दर्द होता है तो तुरंत हड्डियों के डॉक्टर से सलाह लें इसे नजरअंदाज न करें.

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