नई दिल्ली/रांची/पटनाःचार दिन चलने वाला छठ महापर्व सदियों का इतिहास समेटे हुए है. ये हिंदू धर्म का सबसे बड़ा और सबसे पवित्र पर्व माना जाता है. इस साल छठ 18 नवंबर को नहाय खाय से शुरू होगा. 19 नवंबर को खरना, 20 नवंबर को अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य और 21 नवंबर को उदयमान सूर्य को अर्घ्य देकर पारण के साथ समाप्त होगा. इस दौरान भगवान सूर्य और उनकी मानस बहन षष्ठी यानी छठी माई की उपासना होती है.
सूर्य नौ ग्रहों के स्वामी हैं. ये एक मात्र ऐसे देव हैं जिन्हें हम साक्षात देख पाते हैं. भगवान सूर्य ऐसे देव हैं जो मात्र जल अर्पण करने से ही प्रसन्न हो जाते हैं. इनकी पूजा के लिए तांबे के बर्तन में लाल चंदन और लाल पुष्प का उपयोग करना चाहिए. सूर्य पूजा का वैज्ञानिक महत्व भी है. सूर्य को अपनी आंखों से सीधे नहीं देखना चाहिए. अर्घ्य देते समय पात्र से गिरते जल के बीच से सूर्य को देखना चाहिए. ऐसा करने से सूर्य की सातों किरणें आंखों और शरीर पर पड़ती हैं, जिसका तन-मन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
सूर्य की मानस बहन हैं छठी माई
सूर्य और छठी मइया को लेकर कई मान्यताएं हैं. ऋगवेद, विष्णु पुराण और भगवत पुराण में भी सूर्य पूजा का वर्णन है. षष्ठी यानी छठी मइया भगवान सूर्य की मानस बहन हैं. कहते हैं कि छठी मइया की पहली पूजा सूर्य ने की थी. एक और मान्यता के अनुसार देवासुर संग्राम में असुरों ने देवताओं का हरा दिया था. तब देव माता अदिति ने भगवान सूर्य की मानस बहन षष्ठी की पूजा कर तेजस्वी पुत्र की कामना की थी. छठी मइया ने अदिती को सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया और त्रिदेव रूप भगवान ने असुरों को हरा दिया. इसके बाद से छठ पूजा का चलन शुरू हुआ.
सतयुग में सुकन्या से जुड़ी कहानी
एक पौराणिक कथा के अनुसार सतयुग में शर्याति नाम के एक राजा थे. एक बार वो अपनी बेटी सुकन्या के साथ जंगल में शिकार खेलने गए. जंगल में च्यवन ऋषि तपस्या कर रहे थे. ऋषि तपस्या में इतने लीन थे कि उनके शरीर पर दीमक लग गई थी. बांबी से उनकी आंखें जुगनू की तरह चमक रही थीं. सुकन्या ने कौतुहलवश बांबी में तिनके डाले तो दिए, जिससे च्यवन ऋषि की आंखें फूट गईं. इससे गुस्से में ऋषि ने श्राप दिया, जिससे राजा शर्याति के सैनिक भी दर्द से तपड़ने लगे. इसके बाद राजा शर्याति च्यवन ऋषि से क्षमा मांगने पहुंचे और सुकन्या को उसके अपराध को देखते हुए उसे ऋषि को ही समर्पित कर दिया. सुकन्या ऋषि च्यवन के पास रहकर ही उनकी सेवा करने लगी. एक दिन सुकन्या को एक नागकन्या मिली. नागकन्या ने सुकन्या को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य की उपासना करने को कहा. सुकन्या ने पूरी निष्ठा से छठ का व्रत किया जिसके प्रभाव से च्यवन मुनि की आंखों की ज्योति लौट आई.