नई दिल्ली:आज वर्ल्ड कैंसर डे है. ऐसे में राजधानी दिल्ली जहां हर मर्ज की बेहतर इलाज की उम्मीद लेकर हरेक वर्ष देश भर से मरीज पहुंचते हैं. यहां कैंसर पीड़ित मरीजों के उपचार को लेकर स्थिति चिंताजनक है. देश के सबसे बड़े अस्पताल एम्स की ही बात करें तो आंकड़ों के अनुसार प्रतिवर्ष 1.30 लाख कैंसर मरीज यहां इलाज के लिए पहुंचते हैं, जिनमें से कई गंभीर स्टेज में होते हैं. लेकिन उन्हें रेडियोथेरेपी जैसे शुरुआती उपचार के लिए भी कम से कम तीन महीने का इंतजार करना पड़ता है.
हाल ही में नियुक्त हुए एम्स के निदेशक डॉ एम श्रीनिवास ने वेटिंग लिस्ट को कम करने के आदेश दिए हैं, लेकिन अभी भी स्थिति में सुधार नहीं हुआ है. आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में जन्म से लेकर 74 साल की उम्र के हर छह में से एक पुरुष और महिलाओं में हर सात में से एक को कैंसर होने का खतरा है. दिल्ली में महिलाओं के कैंसर के इजाफे की दर 19.3 फीसद है.
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के साइंटिस्ट मॉलिक्यूलर ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ राम एस उपाध्याय ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि कैंसर दुनिया के अंदर दूसरी ऐसी बीमारी है जिससे अधिक मौतें हो रही हैं. लेकिन यह भी सच है कि 40 फीसद कैंसर के होने वाली मृत्यु को आसानी से रोका जा सकता है. मॉडिफाईवेबिल रिस्क इसके फैक्टर हैं जैसे कि तंबाकू सेवन, अल्कोहल सेवन और शारीरिक श्रम आदि नहीं करने की वजह से कैंसर होते हैं, इन कारणों से हुए कैंसर को आसानी से रोका जा सकता है. हम कह सकते हैं कि एक तिहाई जो कैंसर की वजह से मौतें होती है उसे शुरुआती उपचार कर बिल्कुल ठीक किया जा सकता है. डॉ उपाध्याय ने कहा कि यूएसए के अंदर कैंसर ट्रीटमेंट के ऊपर हर साल 1.16 ट्रिलियन डॉलर सरकार खर्च करती है. भारत में भी सरकार कैंसर की रोकथाम बचाव और इलाज के लिए जिला स्तर पर केंद्र स्थापित करें, जहां पर मरीजों की जांच, रेडियोथैरेपी, कीमोथेरेपी और सर्जरी की सुविधाएं मौजूद हो.
दिल्ली के राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी कैंसर हॉस्पिटल समेत अन्य कैंसर अस्पतालों में इलाज महंगा होने के कारण अधिकांश कैंसर मरीज उस खर्च को वहन नहीं कर सकते हैं, उनके लिए सरकारी अस्पताल ही एकमात्र सहारा है जहां अभी भी इलाज आसान नहीं है. एम्स में रेडियोथैरेपी के लिए तीन-तीन महीने बाद की तारीख मिलती है. इतने समय में कैंसर के शुरुआती मरीज भी दूसरे व तीसरे चरण तक पहुंच जाता है, जिसके बाद सर्जरी ही विकल्प बचता है और सर्जरी की तारीख एम्स में 9 महीने से लेकर एक साल बाद की मिलती है. ऐसे में कैंसर मरीज अंतिम स्तर पर पहुंच जाता है और सर्जरी के बाद भी बचने की संभावना काफी कम हो जाती है. यही वजह है कि देश में कैंसर मरीजों की संख्या बढ़ रही है और ठीक होने वाले मरीजों की दर में कमी आ रही है. अगर कैंसर के ईलाज की सुविधा का विकेंद्रीकरण हो जाए तो मरीजों को बेसिक कीमोथेरेपी, रेडियोथैरेपी के लिए अपने शहर से दूर बड़े अस्पतालों में नहीं जाना होगा और यह लाइलाज बीमारी नहीं रह पाएगी.
एम्स कैंसर सेंटर के ऑन्कोलॉजी डिपार्टमेंट के प्रमुख डॉ एस वी एस देव बताते हैं कि देश में सबसे ज्यादा बच्चों में कैंसर की दर दिल्ली में है. दिल्ली कैंसर रजिस्ट्री की ताजा रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में 3.9 फीसद बच्चों में कैंसर मिला है. जबकि देश में यह आंकड़ा 0.7 से 3.1 फीसद के बीच है. बच्चों में यह कैंसर लिंफोमा, ल्यूकेमिया, न्यूरोब्लास्टोमा की तरह की है. डॉ देव कहते हैं इसका सही कारण पता पाना मुश्किल है लेकिन यह भी सच है कि बच्चों में होने वाले कैंसर के मामलों में 80 से 90 फीसद तक ठीक हो जाते हैं.