नई दिल्लीः दिल्ली के जंतर-मंतर पर आज तीन राज्यों के सेब उत्पादक केंद्र सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का रहे हैं. सेब की खेती को बचाने के लिए हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और उत्तराखंड के बागवानों के साझा मोर्चा एप्पल फार्मर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के नेतृत्व में दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है. इस प्रदर्शन में तीनों राज्यों के सेब उत्पादक किसान काफी संख्या में शामिल हुए हैं, जिनमें महिला किसान भी शामिल है.
इस एक दिन के धरना प्रर्दशन में हिमाचल प्रदेश के शिमला, किन्नौर, कुल्लू, मंडी और जम्मू कश्मीर और उत्तराखंड के अलग-अलग जिलों के सेब उत्पादक कमेटियों के सदस्य भी शामिल हुए. सेब उत्पादकों ने केंद्र की सरकार के खिलाफ नारेबाजी करते हुए अपनी आवाज को बुलंद किया और कहा कि हम तीन राज्यों के सेब किसान सरकार से मांग करते हैं कि विदेशी सेब पर 100 फीसदी आयात शुल्क लगाने और सेब संबंधी सभी उत्पादों को जीएसटी के दायरे से बाहर करने सहित अन्य मांगों को लेकर एएफएफआई संघर्ष कर रहा है.
जम्मू कश्मीर के किसान फेडरेशन के सेक्रेटरी जहूर ने बताया कि सेब उत्पादकों के मुद्दों को उठाने के लिए 4 अप्रैल को तीनों राज्यों के सेब उत्पादक किसान जंतर मंतर पर धरना प्रदर्शन देने के लिए इसलिए मजबूर हुए हैं, क्योंकि सेब उत्पादक बड़े संकट से गुजर रहे हैं. मौजूदा केंद्र सरकार ने पूंजीपतियों के हाथों में पूरी तरह से कमान सौंप दी है और हमारे घर परिवार के सामने रोजी-रोटी का भी संकट है. बागवानों के मुद्दों को हम केंद्र सरकार के समक्ष पहुंचाने के लिए दिल्ली पहुंचे हैं. बीते 3 साल के भीतर सेब उत्पादन की लागत दोगुनी हो गई है.
किसानों ने उचित दाम न मिलने का लगाया आरोपः उनका कहना था कि बागवानों को राहत देने के स्थान पर सरकार कृषि इनपुट पर अनुदान खत्म कर रही है. इससे खाद, बीज और दवाइयां किसानों और बागवानों की पहुंच से दूर हो रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सेब पर आयात शुल्क बढ़ाने का कई बार वादा कर चुके हैं, लेकिन इसे आज तक पूरा नहीं किया गया. दुनिया के 44 देशों से सेब आयात होने के कारण हिमाचल, कश्मीर और उत्तराखंड के बागवानों को सेब के उचित दाम नहीं मिल रहे हैं. साथ ही ट्रांसपोर्ट का भी इतना खर्चा है कि कुछ कह नहीं सकते. हमारे सेब की कीमतों को मध्य दामों में खरीदा जा रहा है और इस समय सेब की कीमत काफी बढ़ी हुई है. उसका लाभ सिर्फ पूंजीपतियों को मिल पा रहा है, किसानों से सस्ते दामों में सेव खरीद लिया जाता है और बाद में इन सब का लाभ पूंजीपतियों को दिया जा रहा है.