नई दिल्ली: मेडिकल कॉलेजों में शिक्षक के रूप में गैर मेडिकोज (बीएससी, एमएससी, पीएचडी) की नियुक्ति के मुद्दे पर ऑल इंडिया प्री और पैरा क्लीनिकल मेडिकोज ऑर्गेनाइजेशन ने राजघाट पर एक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया गया. राजघाट पर देश के तमाम डाॅक्टर एसोसिएशन ने स्वास्थ्य क्षेत्र में पढ़ रहे एमबीबीएस और एमडी के छात्रों के लिए पढ़ाने वाले एमसीआई के पुराने नियमों के तहत, गैर मेडिकल स्नातकोत्तर (बीएससी, एमएससी, पीएचडी) को प्री और पैरा क्लीनिकल विभागों (एनाटॉमी, फिजियोलॉजी, बायोकैमिस्ट्री, फार्माकोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी) में कुल संख्या के अधिकतम 30 प्रतिशत तक की संख्या के रूप में नियुक्त किया गया था.
उसका विरोध करते हुए एसोसिएशन ने कहा कि उस समय जब इन विभागों में पर्याप्त चिकित्सा स्नातकोत्तर नहीं थे, तब वैकल्पिक रूप में यह व्यवस्था की गई थी. ताकि इमरजेंसी के दौरान डॉक्टरों की देश में कमी न हो. हालांकि, केंद्र सरकार के प्रयासों से एमबीबीएस और एमडी की सीटें अब बढ़ा दी गई है. अब इन विभागों में पर्याप्त डॉक्टर भी हैं. इस दौरान डाॅ कमाल ने कहा कि इसके बाद एनएमसी ने मेडिकल इंस्टीट्यूशन रेगुलेशन 2022 में टीईक्यू शीर्षक से एक आदेश पारित किया और अधिसूचित किया गया कि इन विभागों में केवल 15 प्रतिशत ही गैर मेडिकल स्नातकोत्तर होंगे. इसके बाद नॉन मेडिकोज ने इसे दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी है. अभी मामला विचाराधीन है.
वहीं, डाॅ. मनाली अग्रवाल ने कहा कि मेडिकल कॉलेज के विभिन्न विभागों में फैकल्टी के रूप में गैर मेडिकोज की नियुक्ति के विरोध में हम डॉक्टर आज राजघाट पर एकत्र हुए हैं. सभी का मानना है कि फैकल्टी वह होता है जो एमबीबीएस छात्रों और स्नातकोत्तर छात्रों को नैदानिक ज्ञान प्रदान करता है. उन्हें पर्याप्त प्रशिक्षण और कौशल प्रदान करता है ताकि कल वे किसी भी मरीज के जीवन और मृत्यु की स्थिति से निपटने के लिए अच्छी तरह से तैयार हो. ऐसे में एक गैर-चिकित्सकीय व्यक्ति, जिसने एमबीबीएस, एमडी की पढ़ाई नहीं की हो, इसके साथ ही वह दैनिक दिनचर्या के हिस्से के रूप में रोगियों का इलाज नहीं किया है, वह एमबीबीएस या एमडी छात्रों के लिए एक शिक्षक के रूप में न्याय करने और उन्हें पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित करने में सक्षम नहीं हो सकता है.