नई दिल्ली:रविदास मंदिर टूटने के मुद्दे पर दिल्ली में राजनीति गरमाती जा रही है. इस मुद्दे पर दिल्ली के कैबिनेट मंत्री राजेंद्र पाल गौतम कहा कि भाजपा अगर चाहती तो संत रविदास का मंदिर नहीं टूटता.
रविदास मंदिर तोड़े जाने के मुद्दे पर 'आप' ने भाजपा पर बोला हमला उन्होंने कहा कि जिस डीडीए ने मंदिर तोड़ा, उसकी कमान केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी के हाथ में है, लेकिन उन्होंने ऐसा कोई प्रयास नहीं किया, जिससे मंदिर टूटने से बचाया जा सके. इस घटना के बहाने राजेंद्र पाल गौतम ने भारतीय जनता पार्टी पर यह भी आरोप लगाया कि भाजपा जब से सत्ता में आई है, तब से दलितों पर अत्याचार बढ़े हैं.
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'मंदिर टूटने के बाद हो रहा है प्रदर्शन'
उन्होंने कहा कि रविदास मंदिर टूटने के बाद देश के अलग-अलग हिस्सों में तो इसके खिलाफ प्रदर्शन हो ही रहा है. देश से बाहर भी ऑस्टिया, इंग्लैंड, कनाडा और अमेरिका में भी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. उन्होंने कहा 35 से 40 करोड़ लोगों की आस्था संत रविदास के साथ जुड़ी है और केंद्र सरकार ने मंदिर तोड़ने की घटना से आस्था पर चोट किया है.
उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा लगता है कि भाजपा दलितों के मंदिर को मंदिर नहीं मानती. भाजपा के कार्यकाल में जगह-जगह दलितों के आदर्श महर्षि वाल्मीकि और रविदास के मंदिर गिराए जा रहे हैं, इसी तरह बुद्ध और अंबेडकर की मूर्तियां भी थोड़ी जा रही हैं.
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'बीजेपी की दलितों के प्रति दूषित मानसिकता'
गौरतलब है कि इस मुद्दे पर राजेंद्र पाल गौतम ने 12 अगस्त को प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखा था, लेकिन अब तक उस पत्र का कोई जवाब नहीं आया है. इसे लेकर भी राजेंद्र पाल गौतम ने कहा कि यह बीजेपी की दलितों के प्रति दूषित मानसिकता को दर्शाता है.
'AAP करेगी मंदिर टूटने का विरोध'
इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में आम आदमी पार्टी के एससी-एसटी विंग के अध्यक्ष कुलदीप कुमार भी थे. उन्होंने भी इस घटना के बहाने भाजपा को आड़े हाथों लिया और कहा कि आम आदमी पार्टी का एससी-एसटी विंग कल सुबह 11:30 बजे रविदास मंदिर तोड़े जाने के खिलाफ भाजपा मुख्यालय का घेराव करेगा. उन्होंने कहा कि इस विरोध प्रदर्शन के जरिए हम मांग करेंगे कि संत रविदास के मंदिर को फिर से स्थापित किया जाए.
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कांग्रेस पार्टी भी इस मुद्दे को लेकर भाजपा पर हमला बोल चुकी है, वहीं बहुजन समाज पार्टी ने भी इसकी निंदा की थी और मंदिर पुनर्स्थापित करने की मांग की थी. गौरतलब है कि दिल्ली की 13 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं, वहीं आधा दर्जन से ज्यादा सीटों पर दलित आबादी जीत-हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. इसके मद्देनजर इस मुद्दे की चुनावी महत्ता समझी जा सकती है.