नई दिल्लीःकोरोना के चलते पिछले करीब 10 माह से बंद पड़े स्कूलों को दिल्ली सरकार ने खोलने की इजाजत दे दी है. हालांकि स्कूल अभी 10वीं और 12वीं के छात्रों के लिए ही खोले जाएंगे. वहीं छात्र और अभिभावक अभी भी सरकार के इस फैसले से सहमत नहीं है.
जहां छात्रों को यह डर सता रहा है कि स्कूल में अन्य बच्चों के संपर्क में आने से, उन्हें भी कोरोना होने का खतरा है तो वहीं अभिभावक इस बात से अनजान है कि स्कूलों ने उनके बच्चों की सुरक्षा के क्या इंतजाम किए हैं. साथ ही एनओसी मांगे जाने पर उन्हें स्कूल द्वारा की गई सुरक्षा व्यवस्था में भी शंका है. कई अभिभावकों ने स्पष्ट तौर पर बच्चों को स्कूल भेजने से इनकार कर दिया है.
सोमवार से 10वीं और 12वीं क्लास के छात्रों के लिए स्कूल खुलेगा
दिल्ली सरकार की ओर से बोर्ड परीक्षाओं और इंटरनल एसेसमेंट का हवाला देते हुए 10वीं और 12वीं के छात्रों को स्कूल बुलाने की हरी झंडी दी जाने के बाद से ही स्कूलों ने छात्रों को स्कूल बुलाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. वहीं अभिभावक सरकार के इस फैसले से सहमत नहीं हैं.
उनका कहना है कि अभी कोरोना वैक्सीन लगनी बस शुरू ही हुई है और दिल्ली सरकार ने स्कूल खोलने की जल्दबाजी कर दी है. अभिभावकों का कहना है कि जब तक वैक्सीन का एक फेस पूरा नहीं होता और उसके सकारात्मक परिणाम देखने को नहीं मिलते, तब तक बच्चों को स्कूल बुलाना उनके जीवन को खतरे में डालना है. ऐसे में वह बच्चे को स्कूल भेजकर उनकी जिंदगी पर खतरा मोल नहीं ले सकते.
अभिभावकों को देना होगा एनओसी
सभी स्कूलों ने छात्रों से एनओसी साथ लाने के लिए कहा है. जिसमें अभिभावक लिखित रूप से अपने बच्चे को स्कूल भेजने की सहमति देंगे. ऐसे में अभिभावकों का कहना है कि एनओसी के नाम पर स्कूल अपना पल्ला झाड़ रहे हैं, जिससे यदि उनके बच्चे को स्कूल में किसी भी तरह का संक्रमण या कोई अन्य परेशानी होती है, तो स्कूल के ऊपर कोई बात ना आए. अभिभावकों का कहना है कि इतने बच्चों के बीच उनके बच्चों के बचाव के लिए स्कूल ने क्या तैयारी की है. इसको लेकर उन्हें कुछ नहीं पता और अगर सुरक्षा की पूरी तैयारी की है, तो बच्चे की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेने के बजाय एनओसी लेकर जवाबदेही से क्यों बच रहे हैं.
स्कूल खोलने को अभिभावकों ने फीस वसूलने की रणनीति बताया
जिन अभिभावकों के बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ रहे हैं, उन्होंने इसे स्कूलों की फीस वसूलने की रणनीति बताया है. उनका कहना है कि बच्चों को स्कूल बुलाकर पूरी फीस वसूल लेंगे और एनओसी लेकर जिम्मेदारियों से पल्ला भी झाड़ लेंगे. अभिभावकों का कहना है कि महज एक परीक्षा के लिए वह अपने बच्चे की जान के साथ खतरा मोल नहीं ले सकते. ऐसे में अभिभावकों को कहना है कि फिलहाल स्थिति को देखते हुए वह ऑनलाइन क्लास से ही संतुष्ट हैं और जब तक सबको वैक्सीन नहीं लग जाती तबतक वह बच्चे को स्कूल नहीं भेजेंगे.
'स्कूल जाने के लिए अभिभावक और बच्चे डरे हुए हैं'
वहीं बच्चे भी अपने माता-पिता से सहमत हैं. वह भी अभी स्कूल जाने से डर रहे हैं. खासतौर पर वह बच्चे जो पहले भी कोविड-19 शिकार हो चुके हैं. ऐसे छात्रों का कहना है कि कोरोना से ग्रसित होने के कारण उन्हें पता है कि इस बीमारी के दौरान कितनी तकलीफ होती है और वह ये दर्द दुबारा नहीं झेलना चाहते. 10वीं और 12वीं के छात्रों का कहना है कि स्कूल में साथ आकर पढ़ने पर संक्रमण का खतरा अधिक है और अभी तक उन्हें वैक्सीन भी नहीं लगी. वैक्सीन कितनी कारगर है इसका भी कुछ अनुमान नहीं है. ऐसे में अपनी जान खतरे में डालकर स्कूल नहीं जाना चाहते.
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