नई दिल्ली/गाजियाबाद: वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहा जाता है. वरुथिनी एकादशी 16 अप्रैल को है, जो शाम 06:14 मिनट तक रहेगी. इसके पश्चात द्वादशी तिथि आएगी. द्वादशी विद्धि होने पर ही एकादशी का व्रत रखा जाता है. एकादशी के दिन व्रत रखने वालों को एक दिन पूर्व शाम को भोजन करना चाहिए. एकादशी के दिन या तो निराहार रहकर उपवास करें अथवा कुछ फलाहार कर सकते हैं.
आध्यात्मिक गुरु और ज्योतिषाचार्य शिवकुमार शर्मा के मुताबिक, एकादशी के दिन विष्णु की पूजा फलदायक होती है. गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि मैं तिथियों में एकादशी तिथि हूं. प्रातकाल भगवान विष्णु की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराएं. फल, मेवा, मिष्ठान आदि का भोग लगाएं. उसके पश्चात एकादशी कथा सुने अथवा वचन करें. भगवान विष्णु की पूजा करें. विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें.
सूर्यास्त के पश्चात अथवा अगले दिन एकादशी व्रत का पारायण करें तो व्रत का पूर्ण फल मिलता है. वरुथिनी एकादशी की कहानी इस प्रकार है- एक बार राजा मांधाता जंगल में भटक गए और एक पेड़ के नीचे बैठकर भगवान के ध्यान में लीन हो गए. तभी वहां एक वराह (जंगली सुअर) आया. उनके पैरों को पकड़ लिया और उन्हें खींचकर ले जाने लगा. विष्णु भक्त मांधाता ने भगवान से करूण शब्दों में प्रार्थना की. तभी भगवान प्रकट हुए और उनको वराह से मुक्त करा दिया. मांधाता ने कृष्ण भगवान से पूछा कि मुझसे क्या अपराध हुआ जो मुझे ऐसा दंड मिला. भगवान विष्णु ने कहा यह आपके पूर्वजन्म के किसी पाप का परिणाम था.
भगवान विष्णु ने उन्हें वैशाख कृष्ण पक्ष की बरुथिनी एकादशी का व्रत करने का आदेश दिया. इस व्रत के करने से महाराज मांधाता को पूर्व जन्म के ज्ञात-अज्ञात पापों व अपराधों से मुक्ति मिल गई. मृत्यु के बाद राजा मांधाता विष्णु पद को प्राप्त हुए. वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को ज्ञात-अज्ञात रूप से किए हुए पापों व अपराधों से मुक्ति मिलती है और घर में सुख शांति का प्रादुर्भाव होता है. एकादशी को मांसाहार नहीं करना चाहिए.
Varuthini Ekadashi 2023: वरुथिनी एकादशी कब, जानिए इसका महत्व, शुभ मुहूर्त, व्रत विधि और कथा - Astrologer Shivkumar Sharma
इस साल वरुथिनी एकादशी 16 अप्रैल को पड़ रही है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. यह व्रत रखने से व्यक्ति को ज्ञात-अज्ञात रूप से किए हुए पापों से मुक्ति मिलती है और घर में सुख शांति आती है.
एकादशी को चावल खाना निषिद्ध है. एकादशी के दिन पक्षियों और पशुओं को भोजन, दाना, चारा आदि खिलाएं. यह एकादशी मेष सक्रांति के आसपास आती है. इसीलिए इस एकादशी को पानी व मीठे शरबत की छबील लगानी चाहिए, इससे बहुत पुण्य मिलता है.
मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ: 15 अप्रैल, रात 08 बजकर 45 मिनट से शुरू
एकादशी तिथि समाप्त: 16 अप्रैल, शाम 06 बजकर 14 मिनट पर समाप्त.
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