नई दिल्लीः दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी द्वारा पंडित दीनदयाल उपाध्याय जयंती के उपलक्ष्य पर 'दीनदयाल उपाध्याय का राष्ट्र दर्शन' विषय पर वेबिनार द्वारा संगोष्ठी का आयोजन किया गया. अनिमेश कुमार चौधरी ने श्रोताओं से पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों को साझा करते हुए बताया कि संस्कृति ही स्वराज का प्राण तत्व है.
उन्होंने बताया कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय का दृढ़ मत था कि स्वराज तभी सार्थक होगा जब अपनी संस्कृति का सम्मान किया जायेगा. एकात्म दर्शन की व्याख्या करते हुए पंडित ने कहा था कि बीज की एकता ही पेड़ के पत्ते, तने व फल में विकसित होती है. राष्ट्रनिर्माण के कुशल शिल्पियों में से एक पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्म मानववाद नामक विचारधारा प्रदान की.
महेश चंद्र शर्मा ने बताया कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय का चिंतन शाश्वत विचारधारा से जुड़ा है. उनके चिंतन को मुख्यतः अंत्योदय के रूप में याद किया जाता है. अपनी इसी शाश्वत विचारधारा से उन्होंने भारत के श्रेष्ठ शक्तिशाली और संतुलित रूप में विकसित राष्ट्र बनने की कल्पना की थी.
इसी के आधार पर उन्होंने राष्ट्रभाव, सामाजिक समस्याएं तथा उनके समाधान पर चर्चा की. एक उत्कृष्ट संगठनकर्ता के रूप में दीनदयाल ने वैकल्पिक राजनीति की नींव रखी जोकि अब देश के गरीब, वंचित व शोषित वर्ग को विकास की मुख्यधारा में लाने का काम कर रही है. आज सरकार भी पंड़ित दीनदयाल उपाध्याय के मार्ग पर चलते हुए जन कल्याण हेतु विभिन्न योजनायें ला रही है.