नई दिल्ली: यमुना खादर की झुग्गी बस्तियों के बच्चे भी अब पढ़ रहे हैं. महिलाएं आत्मनिर्भर हो रही है. कई निजी संस्थाओं की कोशिशें रंग ला रही हैं. हालांकि, इन संस्थाओं को सरकारी मदद की दरकार है. अगर आम लोगों की तरह सरकारें कोशिशें करें तो इन बच्चों और महिलाओं का भविष्य भी चमक सकता है.
कोशिशों से मिलती है मंजिल राही बस चलता जा...इन बच्चों की कोशिशें और महिलाओं की हिम्मत देख मन में यही पंक्तियां आती है. दरअसल, आईएसबीटी कश्मीरी गेट पुल के ठीक नीचे बने यमुना खादर में झुग्गी बस्ती के रहने वाले बच्चों और महिलाओं को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने और उन्हें स्वावलंबी बनाने का बीड़ा निजी संस्थाओं ने उठाया हुआ है. जोकि सरकारी मदद नहीं मिलने के बावजूद भी लगातार इस तरह के इलाकों में चुनौतीपूर्ण काम करते हैं.
मुश्किल होता है बच्चों को पढ़ाई के लिए जुटाना
यमुना खादर में कहने को काफी बच्चे स्कूल भी जाते हैं, लेकिन इस इलाके के बच्चों को पढ़ाई के लिए तैयार करना और फिर उन्हें क्लास तक लाने में टीचरों को खासी मशक्कत करनी पड़ती है.
क्लास तक आने वाले बच्चों का ध्यान खेलकूद से हटाकर उन्हें पढ़ाई के लिए रोकने में दिक्कत होती है. यहां आने वाले बच्चों को कॉपी किताब के अलावा रबर, पेंसिल और पीने के लिये पानी भी मुहैया कराया जाता है.
सुबह 9-1 से चलती है क्लास
खादर के बच्चों के लिए सुबह नौ बजे से दोपहर एक बजे तक क्लास लगाई जाती हैं, इसमें भी कई बार बच्चे बहाने बनाकर क्लास से भाग जाते हैं. ऐसी स्थिति में टीचरों के लिए इन बच्चों को क्लास में रोके रखना चुनौती होता है.