पटना: पूर्व आईपीएस किशोर कुणाल की किताब 'अयोध्या रीविजिटेड' में दावा किया गया है कि 6 दिसंबर 1992 को जिस विवादित ढांचे को तोड़ा गया था, वो बाबरी मस्जिद नहीं थी. किताब के मुताबिक इस बात के पर्याप्त सूबत हैं कि यहां पर राम मंदिर विराजमान था.
सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद की सुनवाई कई दिलचस्प दौर से गुजरी. सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने 40 दिनों तक विस्तार से सभी पक्षों को सुना. यह सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में अब तक की दूसरी सबसे लंबी चली सुनवाई है. सुनवाई में आखिरी दिन सुप्रीम कोर्ट में राजीव धवन ने एक नक्शा फाड़ा था. वो नक्शा जिस शख्स की किताब का था, वो पूर्व आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल की है. इसी बारे में पूर्व आईपीएस किशोर कुणाल से बात की हमारे ईटीवी भारत ब्यूरो चीफ प्रवीण बागी ने.
सवाल: ऐसा कौन सा नक्शा कोर्ट में पेश किया था, जिससे हंगामा मच गया था?
उत्तर: मैंने दुर्गा पूजा की छुट्टी में आकर पटना के आर्किटेक्ट की मदद से स्केल के अनुसार पांच पुख्ते प्रमाणों के आधार पर राम लला के विराजमान वाले स्थान को ही जन्मस्थान सिद्ध किया था. इसी कारण यह हंगामा हुआ.
सवाल: वह नक्शा कहां से आया?
उत्तर: ये नक्शा मैंने तीन साक्ष्यों के आधार पर बनवाया. पहला साक्ष्य, 30 नंवबर 1858 को उस मस्जिद के मुअज्जिन मोहम्मद खतिब साहब ने वहां के थानेदार शीतल दूबे को सूचित किया कि पंजाब से सिख्खों का एक जत्था आया है, जिसने मस्जिद पर कब्जा कर लिया और वहां पर उन्होंने हवन किया. साथ ही उसके दिवार पर राम-राम लिख दिया है. इसलिए उनलोगों को निकाला जाये. उसी में यह लिखा गया है कि यहां सैंकड़ों साल पहले जन्मस्थान का निशान है, जिसकी पूजा हिन्दू लोग करते थे. यह दस्तावेज कोर्ट के पास भी है. इसे ही मैंने पहले प्रमाण के रूप में दिया है.
मोहम्मद खतिब साहब ने जिसे जन्मस्थान का निशान लिखा है उसे जोसफ डिफेंस थेलर ने 1767 में लिखा है कि बाईं ओर एक वर्गाकार स्थान है, जिसे हिन्दू लोग 'बेदी' कहते हैं. बेदी इसलिए कहते हैं कि यहां भगवान विष्णु का जन्म राम के रूप में हुआ था. मोहम्मद खतिब की रिपोर्ट में जिस जन्मस्थान का जिक्र है, उसे यहां बेदी लिखा गया है.
सवाल: जो लोग इतने दिनों से यह मुकदमा लड़ रह थे, क्या उनके पास ये सबूत नहीं थे या इस ओर उनका ध्यान नहीं गया था?
उत्तर: हां, उनका ध्यान नहीं गया था. मैंने बार-बार उन चीजों को पढ़ा, इस कारण मेरा ध्यान गया. मेरे साथ एक विशेषता रही है कि मैं इतिहास का विद्यार्थी रहा हूं और मैंने पुलिस में भी काम किया है, यही अनुभव यहां काम आया.
सवाल: पहली बार सुप्रीम कोर्ट में राम जन्मभूमि उसी जगह है, इसका ठोस सबूत पेश किया गया.
उत्तर: हां, पहली बार सुप्रीम कोर्ट में ठोस सबूत पेश किया गया. इससे पहले इसे केवल आस्था कहते थे. इलाहाबाद कोर्ट का भी जो फैसला है उसमें भी लिखा हुआ है कि 200 साल से हिन्दूओं की मान्यता रही है कि 'जहां रामलला विराजमान हैं, वहीं जन्मस्थान है.'
सवाल: अगर राम मंदिर का फैसला पहले आ जाता तो शायद जो कटुता फैली है, इस विवाद को लेकर वह नहीं फैलती?
उत्तर: 1950 में पहला वाद कायम हुआ था, 1950 से 86, जब तक ताला नहीं खुला था तब मुस्लिम पक्ष ने 12 साल पूरे होने के 5 दिन पहले वाद कायम किया, वह भी इसलिए किया क्योंकि मुकदमा करना था, उन्हें इसमें बहुत दिलचस्पी नहीं थी. लेकिन जब 1986 में ताला खुला तब कुछ सरगर्मी उन लोगों के बीच आई और फिर आंदोलन में तीव्रता आई. 1992 में ढांचा गिरा तब से वो लोग दुखी और आक्रामक हुए. उसके बाद से यह मामला हाईकोर्ट में पहुंचा.
सवाल: क्या राजनीतिक वजहों से यह विवाद टला?
उत्तर: नहीं, यह मैं नहीं कहूंगा. लेकिन राजनीति में यह प्रवृत्ति होती है कि सनसनीखेज मामले को थोड़ा विलंब से किया जाए. लेकिन इसमें ऐसा है, यह मैं नहीं कहूंगा.
सवाल: चंद्रशेखर जी जब प्रधानमंत्री थे तो इस विवाद पर कई गंभीर प्रयास हुए, उस बारे में कुछ बताएं.
उत्तर: चंद्रशेखर जी बहुत दूरदर्शी प्रधानमंत्री थे, उनकी दृष्टि बहुत स्पष्ट थी. उन्होंने सभी से बात कि, जिसके बाद यह लगा कि यहां पर भगवान राम का जन्मस्थान है या लोगों की यह मान्यता है. हालांकि उस वक्त तक मुसलमानों को अयोध्या की इतनी चिंता नहीं थी जितनी इस बात की थी कि अगर इस जगह को वो छोड़ते हैं तो मथुरा, काशी और अन्य स्थानों पर भी इसकी मांग उठने लगेगी.
उस समय उनकी मांग थी कि एक नया कानून बनाया जाए. जिसकी जिम्मेदारी उस वक्त के कानून मंत्री को दी गई, लेकिन कानून मंत्री एक तांत्रिक के चक्कर में पड़ गए और तब तक चंद्रशेखर जी की सरकार गिर गई. अगर एक महीने और चंद्रशेखर जी की सरकार रहती तो इसका फैसला हो जाता. चंद्रशेखर जी कहते थे कि गले से कुछ लोग इसका विरोध करेंगे, लेकिन दिल से सब इसको स्वीकार करेंगे.
सवाल: इस बात में कितनी सच्चाई है कि चंद्रशेखर की सरकार इसलिए गिरा दी गई, ताकि अयोध्या विवाद नहीं सुलझाया जा सके?
उत्तर: नहीं, मैं यह नहीं कहूंगा, क्योंकि मेरा दायित्व केवल अयोध्या तक सीमित था. मुझे जो दायित्व मिलता है, मैं बस वही करता हूं. लेकिन यह बात जरूर थी कि चंद्रशेखर जी ने एक निर्णय ले लिया था. अगर उनकी सरकार एक महीने और रहती तो इसका समाधान हो चुका होता.
सवाल:अब तक यह माना जाता है कि बाबर ने उस ढांचे को तोड़कर मस्जिद बनवाया था. मगर आप इससे इनकार करते हैं, इसका क्या आधार है आपके पास?
उत्तर: काफी शोध के बाद यह पता चला कि गोस्वामी तुलसीदास ने 1574 में राम मंदिर में ही बैठ कर रामचरितमानस की रचना प्रारंभ की. जिसमें यह लिखा 'सब विधि प्ररोहन जानी'. इसका मतलब जब उन्होंने सब प्रकार से अयोध्या को मनोहर समझा तभी रामचरितमानस की रचना प्रारंभ की. यदि मंदिर टूटकर मस्जिद बनी होती तो तुलसीदास ने यह क्यों लिखा होता और वह भी रामनवमी के दिन. कोई दूसरा दिन रहता तो मैं यह मान लेता कि तुलसीदास जी ने किसी और मंदिर में बैठकर इसकी रचना की होगी. लेकिन सभी शास्त्रों में यही उल्लेख है, सरयू नदी में स्नान कर और मंदिर में दर्शन करना. इसी बात को इलाहाबाद कोर्ट में रखा गया. जस्टिस सुधीर अग्रवाल जी ने इस बात को इतने अच्छे तरीके से सिद्ध किया है कि इस पर किसी और मंतव्य की जरूरत नहीं है.