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EDMC: लाइसेंस के नाम पर वसूले गए दोगुना चार्ज, जांच में खुला राज - corruption in india 2019

पूर्वी दिल्ली नगर निगम से घरेलू उद्योग लाइसेंस में भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है. शाहदरा साउथ ज़ोन के रघुबरपुरा वार्ड के 300 से ज़्यादा उधमियों से एक हजार की जगह 3000 रुपये वसूले गए. डिप्टी चेयरमैन श्याम सुंदर अग्रवाल ने मामले की जांच की.

Corruption in domestic industry license by EDMC
EDMC में घरेलू उद्योग लाइसेंस पर भ्रष्टाचार

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Published : Jan 2, 2020, 8:36 PM IST

नई दिल्ली: पूर्वी दिल्ली नगर निगम(EDMC) में घरेलू उद्योग लाइसेंस में भ्रष्टाचार का मामला सामने आया है. कुछ लोग निगम अधिकारियों की मिलीभगत से उद्यमियों से कई गुना पैसा वसूल रहे हैं. मामला शाहदरा साउथ ज़ोन के रघुबरपुरा वार्ड का है जहां 300 से ज्यादा उधमियों से एक हज़ार की जगह 3000 रुपये वसूला गया.

EDMC में घरेलू उद्योग लाइसेंस पर भ्रष्टाचार

श्याम सुंदर अग्रवाल ने दिया मामले में दखल
मामले की जानकारी जब स्थानीय निगम पार्षद और शाहदरा साउथ जोन के डिप्टी चेयरमैन श्याम सुंदर अग्रवाल को हुई तो उन्होंने मामले में दखल दिया और उधमियों से अवैध रूप से लिए गए पैसे को वापस दिलाया.

'329 उधमियों से वसूला गए ज्यादा पैसे'
श्याम सुंदर अग्रवाल ने इटीवी भारत से बाचीत के दौरान बताया कि रघुबरपुरा वार्ड के अंतर्गत रामनगर मार्केट एसोसिएशन ने घरेलू उद्योग लाइसेंस के आवेदन के लिए दो दिवसीय शिविर लगाया था. इस शिविर में 329 लोगों ने अपने फॉर्म जमा किए थे लेकिन सभी लोगों से 1500 रुपये की जगह 3000 रुपये लिए गए.

'फॉर्म के साथ सिर्फ एक हजार का ड्राफ्ट ज़रूरी'
श्याम सुंदर अग्रवाल ने बताया कि जब उन्होंने मार्केट एसोसिएशन के पदाधिकारियों से इस संबंध में बात की तब उन्होंने बताया कि एक शख्स है जिसके कहने पर फॉर्म जमा करने वाले उधमियों से 1500 रुपये की जगह 3000 रुपये लिये जा रहे है. उस शख्स ने उन्हें बताया था कि निगम में आवेदन करने के लिए 3000 रुपये तक का खर्च आता है.

'आवेदन के लिए कोई शुल्क नहीं'
डिप्टी चेयरमैन ने कहा कि निगम की तरफ से आवेदन के लिए कोई शुल्क नहीं रखी गई है. आवेदन पत्र के साथ एक हजार का ड्राफ्ट देना होता है.

'अधिकारियों की है मिलीभगत'
श्याम सुंदर अग्रवाल ने कहा कि इस पूरे मामले में किसी भी अधिकारी की संलिप्तता तो सीधे तौर पर सामने नहीं आई है. लेकिन जिस तरीके से लोगों से पैसे वसूले जा रहे थे इससे साफ है कि कहीं ना कहीं निगम के अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध है.

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