नई दिल्ली:इंसानी जज्बे को सलाम करने के लिए किसी ने दो लाइनें बहुत सही लिखी हैं कि 'मन के हारे हार है और मन के जीते जीत.' गाजियाबाद के शकील अमीरुद्दीन के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है. कम उम्र में ही उनके भाग्य ने दगा दे दिया और उसे 307 के जुर्म में 11 साल तक जेल में सजा काटी. लेकिन जेल की सलाखों के पीछे भी शकील ने जिंदगी जीने का जज्बा नहीं छोड़ा. अपनी जिंदगी के बेशकीमती 11 साल शकील ने जेल की सजा काटने में गुजार दिये. उसके जज्बे और हौसले ने जेल में रहते हुए भी उसकी प्रतिभा को निखार कर एक लेखक बना दिया.
चौथी क्लास तक पढ़े शकील के लिए किताब लिखना आसान नहीं था. लेकिन कहते हैं ना हार तब होती है जब हार मान लिया जाता है...जीत तब होती है जब ठान लिया जाता है. शकील ने भी पढ़ाई करने की ठानी. और इस सब में उसका साथ दिया इंडिया विजन फाउंडेशन ने, यह फाउंडेशन करीब 30 साल पुराना गैर-लाभकारी संगठन है. जो जेल के कैदियों के पुनर्वास और पुन:एकीकरण के लिए प्रतिबद्ध है और इसकी स्थापना भारत पुलिस सेवा की पहली महिला अधिकारी डॉ. किरण बेदी ने की थी. फाउंडेशन जेल में बंद व्यक्तियों के जीवन को बदलने, समाज में सफल पुनर्एकीकरण की दिशा में उनकी यात्रा में सहायता करने की दिशा में अथक प्रयास कर रहा है.