नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर दो साल पहले पैरोल पर छोड़े गए कैदियों की पैरोल खत्म होने के बाद वापस जेलों में बुलाने के आदेश के बाद दिल्ली की तिहाड़ जेल में सरेंडर करने वाले कैदियों की लाइन लग गई है. कोर्ट के आदेश के अनुसार पैरोल खत्म होने वाले कैदियों को आठ अप्रैल तक सरेंडर करना था. इस दौरान शनिवार शाम तक करीब 1000 कैदी तिहाड़ जेल में सरेंडर करने पहुंचे. दरअसल, कोरोना काल में दिल्ली की तिहाड़ जेल से करीब चार हजार कैदियों को छोड़ा गया था. इनमें से अभी तक सिर्फ एक हजार के करीब कैदियों ने ही सरेंडर किया है. बाकी के तीन हजार कैदी फरार हैं. उनके सरेंडर न करने से दिल्ली पुलिस की मुश्किलें बढ़ेंगी. पुलिस के लिए उनके वर्तमान पते की जानकारी निकालने और कोर्ट के नोटिस को तामील कराने की सिरदर्दी बढ़ेगी.
कड़कड़डूमा कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले अधिवक्ता मनीष भदौरिया ने बताया कि कोरोना काल के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूरे देश की जेलों में बंद कैदियों को 45-45 दिन के लिए पैरोल पर छोड़ा गया था. फिर कोरोना की एक के बाद एक कई लहर आने से इनकी पैरोल को 90-90 दिन आगे बढ़ाया जाता रहा. जब इनकी पैरोल की अवधि खत्म हो गई तो भी कैदियों ने वापस जेल में सरेंडर करना शुरु नहीं किया. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी कर सभी कैदियों को आठ अप्रैल की अंतिम तारीख देते हुए सरेंडर करने का आदेश जारी कर दिया.
एडवोकेट भदौरिया का कहना है कि राजधानी दिल्ली में देश के हर राज्य से लोग यहां आजीविका की तलाश में आते हैं. आजीविका कमाने के दौरान उनसे जानबूझकर या अनजाने में कोई अपराध हो जाता है, तो उनको जेल जाना पड़ता है. कोरोना काल में भी बहुत सारे ऐसे लोग जेल से छूटने के बाद अपने-अपने गृह राज्यों को लौट गए. ऐसे में अब पुलिस के पास उनका पुराना पता ही होगा. उनके मौजूदा पते के बारे में पुलिस को जानकारी नहीं होगी. उनको ढूंढकर और पकड़कर जेल भेजने में पुलिस को काफी धनबल खर्च करना पड़ेगा. इसके अलावा बहुत से ऐसे कैदी होंगे जो सजायाफ्ता थे और अब वापस जेल जाने से बचने के लिए वे अपनी बहुत सारी पुरानी पहचान को बदल चुके होंगे. यह भी पुलिस के लिए परेशानी का सबब बनेगा
भदौरिया ने यह भी बताया कि कैदियों के जेल में सरेंडर न करने का एक बड़ा कारण यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह कहा है कि जो भी अंडर ट्रायल कैदी हैं. वे जेल में सरेंडर करने के बाद ही अपनी जमानत याचिका दायर कर सकेंगे. इसमें बहुत से कैदियों ने यह सोचकर सरेंडर नहीं किया है कि वापस जेल जाने के बाद हो सकता है कि उनकी जमानत याचिका मंजूर न हो.