नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने यूजीसी के अध्यक्ष से हलफनामे पर यह बताने को कहा है कि सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में पांच वर्षीय कानून पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए कॉमन यूनिवर्सिटी प्रवेश परीक्षा (सीयूईटी) अनिवार्य है या नहीं. यह आदेश कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट 2023 के परिणाम के आधार पर अपने पांच वर्षीय एकीकृत कानून पाठ्यक्रमों में प्रवेश की पेशकश करने के डीयू के फैसले के खिलाफ दायर एक याचिका पर आया. अब कोर्ट इस मामले पर 18 सितंबर को अगली सुनवाई करेगी.
न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ ने यह आदेश तब दिया जब यूजीसी ने मामले में दायर अपने हलफनामे में कहा था कि डीयू सीएलएटी के माध्यम से छात्रों को अपने कानून पाठ्यक्रम में प्रवेश दे सकता है, जैसा इस संबंध में निर्णय लिया गया है. विश्वविद्यालय की अकादमिक परिषद व कार्यकारी परिषद की बैठक में इस निर्णय को डीयू ने मंजूरी दी है. हाईकोर्ट ने कहा कि उसी समय यूजीसी के संयुक्त सचिव द्वारा जारी 10 मार्च के पत्र से पता चला कि आयोग ने 23 फरवरी की बैठक में निर्णय लिया था कि सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में सभी स्नातक कार्यक्रमों में प्रवेश के लिए सीयूईटी अनिवार्य होगा.
हाईकोर्ट ने कहा कि इसका मतलब है कि यूजीसी ने स्पष्ट रूप से निर्णय लिया है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में सभी (यूजी) कार्यक्रमों में प्रवेश के लिए सीयूईटी अनिवार्य है. इसने डीयू को एक अतिरिक्त हलफनामा दायर करने के लिए भी कहा, जिसमें बताया गया कि क्या कानून पाठ्यक्रम में प्रवेश केवल इस वर्ष क्लैट परीक्षा के आधार पर किया जाएगा या बाद के वर्षों में भी इसी पैटर्न का पालन किया जाएगा.
हाईकोर्ट ने कहा कि भले ही वर्तमान मंजूरी केवल एक वर्ष के लिए है, अगर ऐसी मंजूरी दी जाती है तो डीयू अगले शैक्षणिक वर्ष के लिए परीक्षा के तरीके पर अपना रुख स्पष्ट करेगा. कोर्ट ने केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील निधि रमन से इस मामले में अदालत की सहायता करने के लिए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा को सूचित करने के लिए भी कहा. याचिका को खारिज करने की मांग करते हुए यूजीसी के हलफनामे में कहा गया है कि क्लैट एक केंद्रीकृत राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षा है.