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Sawan 2023: प्राचीन दूधेश्वर नाथ मंदिर में भगवान भोलेनाथ का भव्य श्रृंगार, सावन में श्रद्धालुओं के लिए विशेष व्यवस्था - प्राचीन दूधेश्वर नाथ मंदिर

सावन की महीना आज से शुरू हो गया है. पहले ही दिन प्राचीन दूधेश्वर नाथ मंदिर में श्रद्धालुओं का रेला उमड़ता दिखा. मंदिर कमेटी की तरफ से सावन में इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए विशेष व्यवस्था की गई है.

प्राचीन दूधेश्वर नाथ मंदिर
प्राचीन दूधेश्वर नाथ मंदिर

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Published : Jul 4, 2023, 1:28 PM IST

प्राचीन दूधेश्वर नाथ मंदिर

नई दिल्ली: मंगलवार, 4 जुलाई से सावन के पवित्र महीने की शुरूआत हो चुकी है. सावन में भगवान शिव की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है. मान्यता यह भी है कि इस दौरान सावन सोमवार को विधि-विधान से पूजा करने से भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं. हिंदू धर्म में सावन या श्रावण मास की विशेष महत्व है. शास्त्रों में सावन का महीना धार्मिक कार्य और पूजा पाठ के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण बताया गया है.

सावन में गाजियाबाद के प्राचीन दूधेश्वर नाथ मंदिर में लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ता है. इसी कड़ी में आज मंदिर में सावन का पहला दिन होने के कारण प्रातः काल भगवान भोलेनाथ का भव्य श्रृंगार कर आरती पुजन किया गया. मंदिर के पीठाधीश्वर महंत नारायण गिरी महाराज ने वैद विद्यापीठ के आचार्य एवं छात्रों द्वारा मन्त्रो उच्चारण के साथ भगवान शिव का पंचामृत द्वारा अभिषेक किया.

श्रद्धालुओं के लिए विशेष व्यवस्था: श्रवण मास में प्राचीन दूधेश्वर नाथ मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए मंदिर कमेटी द्वारा विशेष व्यवस्था की गई है. महंत नारायण गिरी के मुताबिक सावन को लेकर सभी तैयारियां पूरी कर ली गई है. मंदिर परिसर को सीसीटीवी कैमरों से लैस किया गया है. आसपास की सड़कों को दुरुस्त करवाया गया है. मंदिर के आसपास के दायरे में लगे हैंडपंप को दुरुस्त कर सुचारू रूप से चालू किया गया है. विभिन्न प्रकार की व्यवस्था और भक्तों की सेवा करने के लिए 50 टीमें बनाई गई है. एक टीम में 10 कार्यकर्ता है, जो सावन की विशेष दिनों में मंदिर की व्यवस्था को संभालेंगे.

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पौराणिक कथाओं में श्रावण मास का वर्णन:श्रावण मास को सर्वोत्तम मास कहा गया है. पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि इसी मास में समुद्र मंथन किया गया था. समुद्र मंथन के दौरान जो हलाहल विष निकला था, उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की थी. विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया था, इसी से उनका नाम 'नीलकंठ महादेव' पड़ा. विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने भगवान शिव पर जल अर्पित किया था.

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