नई दिल्लीः दिल्ली स्टेट कंज्यूमर डिस्प्यूट रिड्रेसल कमीशन (डीएससीडीआरसी) ने दिल्ली एम्स पर एक महिला के इलाज में खामी और चिकित्सकीय लापरवाही का जिम्मेदार ठहराते हुए ढाई लाख रुपये का जुर्माना लगाया है. डीएससीडीआरसी की अध्यक्ष जस्टिस संगीता ढिंगरा सहगल ने शिकायतकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए एम्स को 29 फरवरी 2024 तक जुर्माने की राशि पीड़िता को देने का आदेश दिया है.
जस्टिस संगीता और आयोग की सदस्य पिंकी और जेपी अग्रवाल की बेंच ने महिला द्वारा पेश किए गए सबूतों के आधार पर इलाज में खर्च की राशि को जुर्माने में शामिल करने का निर्णय लिया. आयोग ने आदेश में यह भी कहा कि अगर एम्स तीन महीने की निर्धारित समय सीमा में जुर्माने की राशि पीड़िता को नहीं देता है तो उसे दिसंबर 2008 से नौ प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज देना होगा.
यह है मामला:शिकायतकर्ता के अनुसार, लंबे समय तक बच्चा न होने पर उन्होंने आईवीएफ के इलाज से बच्चा पाने की चाह में दिल्ली एम्स का रुख किया था. यहां सात जनवरी 2008 को एम्स में स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. सुनीता मित्तल की देखरेख में वह भर्ती हुईं. डाक्टरों की टीम ने उनके जरूरी टेस्ट किए. इसके बाद 26 मार्च 2008 को उनका ईटी मॉक टेस्ट किया गया.
पहली बार आईवीएफ:इसके बाद एक दिसंबर 2008 को उनका आईवीएफ किया गया. उसी दिन उन्हें एम्स से छुट्टी दे दी गई. साथ ही इस पूरी प्रक्रिया के खर्च के रूप में उनसे 60 हजार रुपये लिए गए. लेकिन, इस दौरान उनका आवश्यक थॉयराइड टेस्ट नहीं कराया गया.
दूसरी बार आईवीएफ:इसके बाद आईवीएफ का दूसरा प्लान 20 मई 2010 को किया गया. इस दौरान भी डाक्टर उन्हें थॉयराइड टेस्ट कराने की सलाह देने और करने में विफल रहे. दूसरी बार किए गए आईवीएफ का भी परिणाम नहीं निकला.
तीसरी बार आईवीएफ:डाक्टरों ने तीसरी बार आईवीएफ के लिए 21 अप्रैल 2011 का प्रस्ताव दिया. लेकिन, उस समय तक महिला का वजन बढ़ गया था तो महिला एक निजी लैब पर थॉयराइड टेस्ट के लिए चली गई. वहां जांच कराने पर वह थॉयराइड से ग्रसित पाई गई. लैब के डॉक्टर ने उन्हें थॉयराइड की दवाइयां शुरू करने की सलाह दी. इसके बाद महिला ने फिर एम्स में संपर्क किया. जहां उसको तीसरी बार आईवीएफ की सलाह दी गई थी.
थॉयराइड की दवाईयां शुरू होने के बाद महिला ने तीसरी बार आईवीएफ टाल दिया. इसके बाद अगस्त 2008 में एम्स की ओर से उनकी पहले की थॉयराइड की रिपोर्ट देखने के बाद नौ अगस्त को तीसरे आईवीएफ से पहले थॉयराइड टेस्ट कराने की सलाह दी गई. इससे पहले कभी थॉयराइड टेस्ट कराने की सलाह नहीं दी गई. इसके बाद महिला का अपना इलाज कर रहे एम्स के डॉक्टर से विश्ववास उठ गया और उसने तीसरी बार आईवीएफ कराने से इनकार कर दिया.
महिला ने डीएससीडीआरसी में दायर की शिकायत:करीब तीन साल तक बच्चे की आस में आईवीफ की प्रक्रिया को झेलने के बाद तीसरी बार में एम्स की लापरवाही का पता चलने पर महिला ने वकील की मदद से उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज कराई. शिकायतकर्ता ने एम्स निदेशक, एम्स स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की तत्कालीन विभागाध्यक्ष डॉ. सुनीता मित्तल और केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव को पार्टी बनाया.
शिकायत में महिला की ओर से यह दलील दी गई कि जब डाक्टरों के अनुसार आईवीएफ का सक्सेस रेट 25 से 30 प्रतिशत है और थॉयराइड पीड़ित महिलाओं में इसका सक्सेस रेट मात्र 15 प्रतिशत है तो उन्होंने आईवीएफ से पहले उसका थॉयराइड टेस्ट क्यों नहीं किया. और न ही खुद कराने की सलाह दी. शिकायत दर्ज होने के बाद विपक्षा पार्टियों को आयोग द्वारा तीन अप्रैल 2014 को लिखित में अपने बयान आयोग में दर्ज कराने को नोटिस जारी किया गया. लेकिन, विपक्षी पार्टियों की ओर से कोई बयान नहीं दर्ज कराया गया. इसके बाद भी कई तारीखों पर भी एम्स और अन्य संबंधित व्यक्तियों की ओर से अपने पक्ष में पर्याप्त तर्क नहीं प्रस्तुत करने के चलते आयोग ने शिकायतकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया.
आयोग ने की यह टिप्पणी:आयोग ने फैसला सुनाते हुए पाया कि थॉयराइड की समस्या से आईवीएफ की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है. आयोग ने टिप्पणी की कि यह तय सिद्धांत है कि मरीज को क्या इलाज देना है, यह केवल एक डॉक्टर ही तय कर सकता है.