नई दिल्लीः दिल्ली एम्स के न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग के डाक्टरों ने चौथे चरण के कैंसर के मरीजों को अधिक समय तक नियंत्रित करने के लिए इलाज की एक नई तकनीक विकसित की है. फिलहाल, इस तकनीक से डाक्टरों को चार तरह के कैंसर को पांच साल से भी अधिक समय तक नियंत्रित करने में सफलता मिली है. एम्स न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ चंद्रशेखर बाल ने बताया कि वर्ष 2018 में उन्होंने थेरानोस्टिक्स तकनीक से चौथे चरण के कैंसर से ग्रसित मरीजों को अल्फा थेरेपी से इलाज करना शुरू किया. तब से अभी तक 91 मरीजों का इलाज कर चुके हैं, जिनमें थेरेपी देने के बाद से 65 प्रतिशत मरीजों को पांच साल से ज्यादा का समय हो चुका है.
यह थेरेपी इंजेक्शन के जरिए मरीज को दी जाती है. डॉ चंद्रशेखर बाल ने बताया कि आमतौर पर चौथे चरण के कैंसर से ग्रसित मरीज की जिंदगी छह महीने लेकर अधिकतम एक साल तक मानी जाती है. इसका कारण यह है कि इन मरीजों को दी जाने वाली कीमोथेरेपी का असर कैंसर से ग्रसित सेल्स को मारने के साथ ही स्वस्थ सेल्स पर भी हो जाता है, जिससे मरीजों को नुकसान भी होता है. कीमोथेरेपी के बाद मरीजों की हालत बिगड़ भी जाती है. इसके अलावा उन्होंने बताया कि 400 से ज्यादा मरीजों को वह बीटा थेरेपी दे चुकी हैं. इससे भी चौथे चरण के कैंसर को लंबे समय तक नियंत्रित करने में सफलता मिली है.
थेरानोस्टिक्स तकनीक से थेरेपी में नहीं मरते स्वस्थ सेल्स:डॉ चंद्रशेखर ने बताया कि इस थेरेपी में आक्टेनियम का इस्तेमाल होता है. लेकिन, आक्टेनियम बहुत ही दुर्लभ पदार्थ है, जो परमाणु ऊर्जा केंद्रों में इस्तेमाल होने वाले थोरियम के अपशिष्ट से निकलता है. इसका उत्पादन अपने देश में बहुत कम है. आक्टेनियम का इस्तेमाल कर अल्फा थेरेपी के लिए आइसोटाप्स को इस तरह तैयार किया जाता है कि वे सिर्फ कैंसर के संक्रमण वाले सेल्स को ही टारगेट करते हैं. ये आइसोटॉप्स मरीज के एक भी स्वस्थ सेल को टारगेट नहीं कर सकते, इसलिए यह ज्यादा असरदार है.