नई दिल्ली:खेलों के सबसे बड़े महाकुंभ टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympics 2020) एक हफ्ते बाद यानी 23 जुलाई से शुरू हो रहा है. आयोजन में भाग लेने वाले खिलाड़ियों से उम्मीद है कि खेलों के इस सबसे बड़े आयोजन में मेडल जीतकर देश का नाम रोशन करेंगे. उम्मीद सही भी है और होनी भी चाहिए. लेकिन उम्मीद करने से पहले एक लाजिमी सवाल है कि क्या इन युवा खिलाड़ियों के खेल कौशल को निखारने के लिए जरूरी सुविधाएं भी सरकारों की ओर से दी जाती हैं ? आइए, विश्व युवा कौशल दिवस 2021 (World Youth Skills Day 2021) पर जानते हैं कि विश्व के अन्य देशों के मुकाबले हमारे देश में खिलाड़ियों के लिए हकीकत में क्या खेल सुविधाएं हैं, जो उनके कौशल को निखारने में कारगर हैं...
विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी वाले देश भारत के 100 से ज्यादा खिलाड़ी टोक्यो ओलंपिक में हिस्सा लेंगे. जापान की राजधानी टोक्यो में 23 जुलाई से ओलंपिक खेलों के आयोजन में विनेश फोगाट, बजरंग पुनिया, दीपिका कुमारी, पीवी सिंधु, अमित पंघाल और वी रेवती जैसे खिलाड़ियों से गोल्ड मेडल की उम्मीद है. पर एक दिलचस्प बात ये है कि ओलंपिक में भाग लेने वाले ज्यादातर खिलाड़ियों के अब तक के सफर पर ध्यान दिया जाय, तो इन्हें जरूरी सुविधाओं के लिए भी संघर्ष करना पड़ा है. इनमें एक चर्चित नाम तमिलनाडु की एथलीट वी रेवती (V Revathi) का है. रेवती के पास शुरुआती दिनों में जूते तक नहीं थे.
बड़े आयोजनों में ये हैं फिसड्डी होने के कारण
बड़ी युवा आबादी होने के बावजूद अभी तक ओलंपिक जैसे बड़े खेल आयोजनों में भारत के फिसड्डी होने का सबसे बड़ा कारण स्कूली स्तर पर बच्चों में खेल प्रोत्साहन का अभाव है. देश में शिक्षा प्रणाली भी ऐसी है, जहां स्कूलों में खेल सिर्फ एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटीज के अंर्तगत आते हैं, ताकि अच्छी नौकरी के लिए बायोडाटा थोड़ा अच्छा बन सके. चीन, अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देशों में युवाओं में खेल कौशल निखारने के लिए बचपन से ही विशेष ध्यान दिया जाता है, जो कि भारत की तरह सिर्फ कागजों पर नहीं होता. इन देशों में योजनाओं की समय-समय पर निष्पक्ष पड़ताल होती है. यही वजह है कि इन देशों के खिलाड़ी ओलंपिक (Olympics) जैसे बड़े खेल आयोजनों में बेहतर प्रदर्शन करते हैं और पदकों की तालिका में शीर्ष पर कायम रहते हैं.
कम उम्र में हो जाता है चयन
भारत के पड़ोसी मुल्क चीन में स्कूल के स्तर पर ही खेलों में रुचि दिखाने वाली प्रतिभाओं का चयन हो जाता है. इन युवा प्रतिभाओं को जैसे ही नेशनल सेंटर में दाखिल किया जाता है. उसके बाद से ही इन्हें अपनी स्किल को निखारने के लिए आवश्यक सुविधाओं के बारे में किसी तरह की चिंता नहीं करनी होती, क्योंकि इनकी जिम्मेदारी को पूरी तरह से सरकार उठाती है और वह अपनी जवाबदेही भी तय करती है. यहां तक कि इन्हें अपनी पढ़ाई-लिखाई के बारे में भी नहीं सोचना पड़ता. वहीं बात स्वदेश भारत की करें, तो हकीकत ये है कि ज्यादातर खिलाड़ियों को अपनी स्किल को निखारने के लिए और खेल की कीमत पर शिक्षा का ध्यान भी खुद ही देना होता है.
उपखण्ड स्तर पर स्थापित किए जाएं खेल स्कूल
खेलों के जानकार कहते हैं कि वक्त की मांग हैं कि देश में हर तहसील या उपखण्ड स्तर पर खेल स्कूल स्थापित किए जाएं, वहां खेलों के बारे में अलग से पढ़ाई हो और बाकि पढ़ाई का ज्यादा बोझ न हो. इन स्कूलों में ऐसे अत्याधुनिक खेल परिसरों का निर्माण किया जाए, जहां खिलाड़ियों को हर सुविधा उपलब्ध हो, जैसी अमेरिका, चीन तथा रूस जैसे खेलों में अग्रणी देशों के खिलाड़ियों को मिलती है.
इन देशों की तरह से अगर हम 10-11 साल के बच्चों को लेकर तैयारी करेंगे तो बहुत जल्दी परिणाम मिलेंगे. आज क्रिकेट, बैडमिंटन और हॉकी जैसे खेलों में लीग प्रणाली का उपयोग किया जा रहा है, क्यों न इस लीग प्रणाली को शेष भारतीय खेलों में भी प्रयुक्त किया जाए, जिससे भविष्य में अन्य खेल के खिलाड़ियों को बेहतर अवसर और आर्थिक स्थिरता मिल सके.
तीन सबसे अधिक आबादी वाले देश और ओलंपिक
चीन, भारत और अमेरिका दुनिया के सर्वाधिक आबादी वाले देश हैं. भारत और चीन की आबादी में ज्यादा अंतर नहीं है लेकिन तीसरे नंबर पर मौजूद अमेरिका की आबादी सिर्फ 33 करोड़ के लगभग है. लेकिन युवाओं की आबादी भारत में सबसे अधिक है. इन तीनों देशों में युवाओं की आबादी की ही तरह ओलंपिक में प्रदर्शन में भी बहुत अंतर नजर आता है. भारत में युवा तो सबसे अधिक हैं लेकिन ओलंपिक पदकों के मामले में भारत बहुत नीची पायदान पर है.
कुल आबादी | युवा आबादी | |
दुनिया | 779 करोड़ | 121 करोड़ |
भारत | 138 करोड़ | 25 करोड़ |
चीन | 144 करोड़ | 17 करोड़ |
अमेरिका | 33 करोड़ | 4.4 करोड़ |
रियो ओलंपिक 2016 | |
देश | मेडल |
भारत | 02 |
चीन | 70 |
अमेरिका | 121 |
लंदन ओलंपिक 2012 | |
देश | मेडल |
भारत | 06 |
चीन | 91 |
अमेरिका | 104 |