हैदराबाद:हरियाणा स्टीलर्स के कप्तान विकास कंडोला 7वीं कक्षा से ही कबड्डी खेलना शुरू कर दिए थे. विकास सुबह जल्दी उठते थे और कबड्डी खेलते थे, जो धीरे-धीरे एक जुनून में बदल गया. जब बाकी दुनिया क्रिकेट पर दीवानी थी, तब हरियाणा में जींद जिले के बुदैन गांव निवासी विकास कंडोला को कबड्डी खेलने का धुन सवार था. विकास बिना सोचे-समझे चिलचिलाती गर्मी का सामना करते हुए कबड्डी खेलते थे. विकास ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की और अपने अनुभव शेयर किए.
विकास ने बातचीत के दरमियान बताया, एक अच्छा कबड्डी खिलाड़ी बनना उनके लिए आसान नहीं था. खेल ने उनके माता-पिता को चिंतित कर दिया था, क्योंकि उन्हें चोट लग गई थी. उनके खेल के कारण उनकी पढ़ाई में बाधा आने लगी, क्योंकि वह रोज खेलने से थक जाते थे, इस वजह से उनकी पढ़ाई-लिखाई ठीक से नहीं हो पाती थी.
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विकास ने बताया, मैं रोजाना खेलने के बाद थक जाता था, इसको लेकर मेरे परिवार वाले खासा परेशान रहने लगे. उन्होंने पूछा, भविष्य में क्या करोगे? खेलते हुए थक जाने के कारण मैं कभी-कभी स्कूल नहीं जा सकता था. यह सब मेरे परिवार के लिए चिंता का विषय था.
विकास ने बताया, चोट के कारण उन्हें बुरे सपने दिखाई दिए. लेकिन यह हर खिलाड़ी के जीवन का हिस्सा है और इसे स्वीकार करने से कप्तान के लिए खेल में इक्का-दुक्का बनने की महत्वाकांक्षा पैदा हुई है. उनका मानना है कि प्रो कबड्डी ने खेल का रंग बदल दिया है.
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प्रश्न: आपने कबड्डी की शुरुआत कैसे और कब की?
मैंने बचपन से ही कबड्डी खेली है. हमारे गांव में खेल के प्रति काफी दीवानगी है. मैंने बचपन में ही खेलना शुरू कर दिया था, जब मैं 7वीं कक्षा में था और फिर यह एक जुनून बन गया.
प्रश्न: आप कबड्डी के लिए क्यों गए, जब आप कुछ और चुन सकते थे?
हमारे गांव में कबड्डी ही एकमात्र खेल खेला जाता था. हर बच्चा इसे खेलता था. मैं उनके नक्शे कदम पर चला और खेल का लुत्फ उठाने लगा.
प्रश्न: खेल को आगे बढ़ाने में आपको किन बाधाओं का सामना करना पड़ा?
जब मैं शुरुआत करता था तो मैं घायल हो जाता था और मेरा परिवार मेरे बारे में चिंतित था और पूछता था कि आप भविष्य में क्या करेंगे? खेल खेलने के थकाऊ दिन के बाद मैं कभी-कभी स्कूल नहीं जा पाता था. मैं खेल में वापसी नहीं कर पाने की डर से बड़ी चोट लगने की स्थिति में चिंतित हो जाता था. लेकिन ये सभी बाधाएं हर खिलाड़ी के जीवन में आती हैं, यह कोई नई बात नहीं है.