हैदराबाद : कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों...! इस कहावत को चरितार्थ कर दिखाया है भारत की बिना हाथ वाली तीरंदाज शीतल देवी ने. जम्मू कश्मीर की रहने वाली 16 वर्षीय इस तीरंदाज ने हाल ही में चीन के हांगझाऊ में संपन्न हुए एशियाई पैरा खेलों 2023 में 3 मेडल जीतकर इतिहास रचा है. वो इन खेलों के एक ही संस्करण में 2 स्वर्ण पदक अपने नाम करने वाली पहली भारतीय महिला बन गई हैं. आज उन्होंने सफलता का मुकाम हासिल कर लिया है लेकिन उनका यहां तक का सफर बिल्कुल आसान नहीं रहा है.
आज हम आपको शीतल देवी की प्रेरणादायक कहानी बताने वाले हैं कि कैसे एक 16 साल की लड़की ने जम्मू कश्मीर के किश्तवाड़ के दूरस्थ इलाके से निकलकर चीन में भारत का परचम बुलंद कर दिया.
शीतल देवी का सफर
शीतल देवी का जन्म जम्मू कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के दूरदराज गांव लोई धार में एक गरीब परिवार में हुआ था. शीतल के पिता खेतों में काम करते हैं और उनकी मां घर की 4-5 बकरियों को संभालती हैं. उनके जन्म से ही दोनों हाथ नहीं है. लेकिन 16 साल की भारत की इस बेटी के लिए दिव्यांगता अभिशाप नहीं बन पाई और शीतल दोनों बाजु के बिना ही अपनी छाती के सहारे दांतों और पैर से तीरंदाजी करने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी बन गई. साथ ही शीतल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने वाली बिना हाथों वाली पहली तीरंदाज भी हैं. हालांकि अब दुनिया में बिना हाथ वाले कुल 6 तिरंदाज आ चुके हैं.
फोकोमेलिया बीमारी से हैं पीड़ित
शीतल जन्म से ही फोकोमेलिया नाम की बीमारी से पीड़ित है. इस बीमारी में अंग अविकसित रहता है और पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाता है. जब उन्होंने तीरंदाजी की ट्रेनिंग लेनी शुरू कि तो शुरुआत में तो वो धनुष तक नहीं उठा पाती थीं, क्योंकि भुजाहिन होने के कारण उन्हें अपने दाएं पैर से धनुष को उठाना पड़ता था. लेकिन निरंतर प्रयास और कुछ कर गुरजने के जज्बे के साथ वो मेहनत में जुटी रहीं और फिर सभी चीजें उनके लिए आसान होती चली गईं.
2 साल पहले शुरू की ट्रेनिंग
शीतल देवी का तीरंदाज के तौर पर सफर साल 2021 में शुरू हुआ, जब उन्होंने पहली बार किश्तवाड़ में भारतीय सेना की एक युवा प्रतियोगीता में भाग लिया था. शीतल ने अपनी काबिलियत और जज्बे की बदौलत सभी कोच को अपनी ओर आकर्षित किया. फिर शीतल को भारतीय सेना ने बचपन में ही गोद ले लिया. इसके बाद सेना ने उनके आर्टिफिशियल हाथ के लिए बैंगलोर में मेजर अक्षय गिरीश मेमोरियल ट्रस्ट से संपर्क किया, ट्रस्ट ने स्टोरीटेलिंग प्लेटफॉर्म Being You से संपर्क किया, लेकिन आर्टिफिशियल हाथ उन्हें फिट नहीं हो पाया. एक बार को तो ऐसा लगने लगा कि शीतल का करियर शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाएगा लेकिन इसके बाद पाया गया कि उनके शरीर का ऊपरी हिस्सा बहुत मजबूत है. फिर उनके शरीर के ऊपरी हिस्सों को और अधिक मजबूत करने पर जोर दिया गया.