नई दिल्ली :दक्षिण एशियाई खेलों में लगातार दो बार स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय राष्ट्रीय पुरुष खो खो टीम के कप्तान बालासाहेब बोकार्डे का मानना है कि कबड्डी की तरह खो खो भी जनमानस और जमीन से जुड़ा हुआ खेल है, ऐसे में देश में बीते कुछ सालो में कबड्डी को जितना प्यार और सम्मान मिला है, उसी तरह का सम्मान खो खो को भी मिलना चाहिए.
कबड्डी की तरह ही देश के प्राचीन खेलों में से एक खो खो को 2016 में दक्षिण एशियाई खेलों में शामिल किया गया था. भारत की पुरुष टीम ने उस साल भी स्वर्ण पदक जीता था और टीम ने इस बार भी नेपाल में हुए दक्षिण एशियाई खेलों के फाइनल में बांग्लादेश को हराकर लगातार दूसरी बार ये खिताब जीता है.
टीम की इस जीत से उत्साहित कप्तान बोकार्डे का मानना है कि खो खो को कबड्डी की तरह ही पहचान मिलनी चाहिए.
बोकार्डे ने कहा, "कबड्डी की तरह ही खो खो भी भारत का प्राचीन खेल है और हममें से किसी न किसी ने बचपन में जरूर खो खो खेला होगा. ये खेल बहुत प्रसिद्ध है लेकिन इसके बढ़ावा कम मिला है.
अब जबकि इस खेल में भी लीग शुरू होने जा रही है, तो आशा है कि खो खो भी कबड्डी की तरह ही प्रसिद्ध होगा और इसके खिलाड़ियों को भी उसी तरह का मान-सम्मान मिलेगा, जोकि अन्य खेलों के खिलाड़ियों को मिलता है."
कप्तान ने कहा कि उनकी टीम दक्षिण एशियाई खेलों में अपने खिताब का बचाव करने को लेकर आश्चस्त थी. उन्होंने कहा, "मुझे पूरा विश्वास था कि मेरी टीम, जिसने पिछली बार स्वर्ण पदक जीता था, इस बार भी अपना खिताब बचाने में सफल होगी. हम लोग खिताब बचाने की पूरी उम्मीद के साथ मैट पर उतरे थे."
ये पूछे जाने पर कि टूर्नामेंट में किस तरह की चुनौती का सामना करना पड़ा, उन्होंने कहा, "मुझे नहीं लगता है कि किसी भी टीम के खिलाफ हमें कड़ी चुनौती मिली. लेकिन बांग्लादेश के खिलाफ हमें चुनौती का सामना करना पड़ा. उन्होंने भी अच्छा प्रदर्शन किया. उनकी स्पीड बहुत अच्छी थी, हमने जो तकनीक और रणनीति बनाई थी, उनमें वे फंस गए और हमने उन्हें आसान से हरा दिया."
कप्तान ने कहा कि दक्षिण एशियाई खेलों के अलावा अब उनका लक्ष्य अन्य इंटरनेशनल टूर्नामेंट में भारत को स्वर्ण पदक दिलाना है. उन्होंने कहा, "दक्षिण एशियाई खेलों के बाद हमें एशियन चैंपियनशिप और विश्व चैंपियनशिप में भी भाग लेना है. इसे देखते हुए अब हमारा अगला लक्ष्य इन टूर्नामेंटों में भी देश के लिए स्वर्ण पदक जीतना है."