चेन्नई: आर प्रगाननंदा ने अपनी बहन के शौक से प्रभावित होकर शतरंज को काफी कम उम्र में ही अपने जीवन का हिस्सा बना लिया और उस उम्र में खेल के गुर सीख लिए जब उनकी उम्र के अधिकतर लड़कों को बच्चा कहा जाता है.
मात्र तीन बरस की उम्र में प्रगाननंदा इस खेल से जुड़ गए थे जबकि उनकी बड़ी बहन वैशाली को इसलिए यह खेल सिखाया गया जिससे कि वह टीवी पर कार्टून देखने में कम समय बिताए. सोलह सात्र के प्रगाननंदा अभी भारतीय शतरंज के भविष्य माने जा रहे हैं.
वर्ष 2016 में मात्र 10 साल और छह महीने की उम्र में जब प्रगु (दोस्त और कोच उन्हें प्यार से इसी नाम से बुलाते हैं) अंतरराष्ट्रीय मास्टर बने तो उन्हें शतरंज में भारत का भविष्य बताया गया. उन्होंने रविवार को अपने करियर की सबसे बड़ी जीत दर्ज करते हुए दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी मैग्नस कार्लसन को हराया.
प्रगाननंदा की यह उपलब्धि काफी बड़ी है विशेषकर यह देखते हुए कि वह विश्वनाथन आनंद और पी हरिकृष्णा के बाद सिर्फ तीसरे भारतीय खिलाड़ी हैं जिन्होंने गत विश्व चैंपियन कार्लसन को हराया है.
प्रगाननंदा की शतरंज यात्रा उस समय शुरू हुई जब अधिकांश बच्चों को पता भी नहीं होता कि वह जीवन में क्या कर रहे हैं.
बैंक में काम करने वाले पोलियो से ग्रसित पिता रमेशबाबू और मां नागलक्ष्मी चिंतित थे कि वैशाली टीवी देखते हुए काफी समय बिता रही है. वैशाली को शतरंज से जोड़ने के पीछे यह कारण था कि उन्हें उनके पसंदीदा कार्टून शो से दूर किया जा सके.
किसे पता था कि वैशाली को देखकर प्रगाननंदा की भी रुचि जागेगी और वह इस खेल में अपना नाम बनाएंगे.
रमेशबाबू ने याद किया, ‘‘हमने वैशाली को शतरंज से जोड़ा जिससे कि उसके टीवी देखने के समय को कम किया जा सके. दोनों बच्चों को यह खेल पसंद आया और इसे जारी रखने का फैसला किया.’’
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उन्होंने कहा, ‘‘हमें खुशी है कि दोनों खेल में सफल रहे हैं. इससे भी महत्वपर्ण यह है कि हमें खुशी है कि वे खेल को खेलने का लुत्फ उठा रहे हैं.’’