हैदराबाद :ईटीवी भारत ने 'फिजिकल इशूज फेस्ड बाय विमेन इन स्पोर्ट्स' के मुद्दे को उठाया और एक पैनल डिसकशन किया. इसमें महिलाओं की उस समस्या को लेकर चर्चा हुई जो वे खेलते वक्त अपने पीरियड्स के दौरान सामना करती हैं. इस बारे में बात करने के लिए पैनल में बैडमिंटन स्टार ज्वाला गुट्टा, पूर्व महिला क्रिकेटर रीमा मलहोत्रा, पैराओलंपियन कमेटी की प्रेसिडेंट दीपा मलिक, स्पोर्ट्स साइकोलॉजिस्ट मुग्धा बावरे, भारतीय महिला क्रिकेट टीम की पूर्व फील्डिंग कोच रह चुकीं सुमन शर्मा, आंध्र प्रदेश महिला क्रिकेट टीम की स्पोर्ट्स फीजियोथेरेपिस्ट धरिनी रोचानी और स्पोर्ट्स प्रेजेंटर रिद्धिमा पाठक शामिल हुईं.
ज्वाला ने कहा, "हमको बचपन से ही बताया गया था कि पीरियड्स बहुत आम चीज होती है. मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई. जब मैं प्रोफेशनल खेलने लगी तब पीरियड्स के समय कभी दर्द बहुत होता था कभी-कभी नहीं होता था. मैं दवाई ले लेती थी. मैं उस बारे में ज्यादा सोचती नहीं. सच कहूं तो मैंने अपने पीरियड्स के टाइम अच्छा प्रदर्शन दिया है. ये दिमाग में होता है. मैं अपने ऊपर प्रेशर नहीं डालती हूं. ये मेरे लिए पॉजिटिव होता है."
इसके जवाब में रीमा ने कहा, "सच कहूं तो मैंने दवाई ली थी लेकिन वो पीरियड्स लाने के लिए थी. मुझे एक बार फिंगर इंजरी हुई थी जिसके कारण मुझे काफी पेनकिलर लेने पड़े थे जिसने मुझ पर उलटा असर डाला था और 6 महीने तक मेरे पीरियड्स नहीं आए थे. उसके लिए मैंने दवाई ली थी कि मेरे पीरियड्स आ जाएं. वैसे मुझे इससे कभी फर्क नहीं पड़ा था क्योंकि मुझे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता था, मुझे दर्द नहीं होता था. मैच का प्रेशर इस दर्द को कहीं न कहीं भुला देता है."
पैरालंपिक दीपा मलिक ने बताया, "मैंने खेलना बहुत बाद में शुरू किया था, मैंने 36 साल की उम्र में खेलना शुरू किया था. मैंने खेलना चेस्ट बिलो पैरालिसिस में शुरू किया था. मुझे चेस्ट के नीचे कोई सेंसेशन नहीं होती. मुझे दर्द वैसे भी महसूस नहीं होते हैं. सिर्फ क्रैंप्स आते हैं, इसी तरह दिमाग समझ जाता है कि कोई दर्द है शरीर में."