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Published : Aug 2, 2022, 8:21 PM IST

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Lawn Bowls: जिसकी गेंद तक भारत में नहीं बनती, उसमें देश की बेटियों ने रचा इतिहास

बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में भारत ने लॉन बॉल में अपने पदकों की शुरुआत ही स्वर्ण पदक से की है. इस 'गुमनाम' खेल को इस महीने से पहले तक कोई नहीं जानता था, लेकिन देश की बेटियों ने स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया.

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हैदराबाद:राष्ट्रमंडल खेल में खेलने आए भारतीय दल की सबसे उम्रदराज महिलाओं की टीम लॉन बॉल में थी, लेकिन 42 साल की लवली चौबे, 41 साल की पिंकी, 34 साल की रूपा रानी टिर्की और 33 साल की नयनमोनी सेकिया ने इतिहास रच दिया है. महिलाओं ने उम्र को पीछे छोड़ते हुए लॉन बॉल में देश को राष्ट्रमंडल खेलों में पहला पदक दिलाया है. चार खिलाड़ियों के प्रारूप में सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड को 0-6 से पिछड़ने के बाद 16-13 से हराकर फाइनल में जगह बनाई. इसके बाद फाइनल में भारत ने दक्षिण अफ्रीका को 17-10 से हरा दिया और चैंपियन बनीं.

बता दें, लॉन बॉल को राष्ट्रमंडल खेलों में साल 1930 में शामिल किया गया था. उस लिहाज से 92 साल पुराने इस खेल में भारत ने सबसे पहली बार साल 2010 में हिस्सा लिया था. तब से लेकर अब तक टीम चार बार हिस्सा ले चुकी है, लेकिन कभी भी कोई मेडल नहीं जीता. मंगलवार (2 अगस्त) को भारत को इस खेल में पहला पदक मिला और वह भी स्वर्ण के रूप में. भारत की बेटियों ने इस खेल में भारत को स्वर्णिम शुरुआत दिलाई है.

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चारों खिलाड़ी की पहचान

  • 42 साल की लवली चौबे झारखंड में पुलिस कांस्टेबल हैं. इससे पहले 100 मीटर स्प्रिंटर भी रह चुकी हैं
  • 41 साल की पिंकी दिल्ली में फिजिकल एजुकेशन की टीचर हैं, वह पूर्व क्रिकेटर भी रह चुकी हैं
  • 34 साल की रूपा रानी टिर्की झारखंड में ही जिला खेल अधिकारी हैं. रूपा पहले कबड्डी खिलाड़ी भी रह चुकी हैं
  • 33 साल की नयनमोनी सेकिया असम में फॉरेस्ट ऑफिसर हैं. वह पहले वेटलिफ्टर भी रह चुकी हैं

फाइनल में पहुंचने के बाद और पदक पक्का करने के बाद सभी खिलाड़ियों के आंखों में आंसू थे. वहीं, फाइनल में दक्षिण अफ्रीका को हराते ही चारों ने एक-दूसरे को गले लगा लिया. भारतीय कप्तान लवली चौबे पहले 100 मीटर की धाविका थीं, जबकि नयनमोनी भारोत्तोलक थीं. चोट के कारण इन्होंने अपना मुख्य खेल छोड़ लॉन बॉल को अपना लिया था, जिसमें चोट का कम खतरा है.

महिला लॉन बॉल टीम

भारत की चारों बेटियों ने बर्मिंघम राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी बिना किसी मदद के की है. साल 2010 से भारत ने राष्ट्रमंडल खेलों में इस इवेंट में हिस्सा लेना शुरू किया था. तब से लेकर अब तक तीन बार भारतीय टीम सफल नहीं हो पाई थी. ऐसे में इस बार खिलाड़ियों को कोच तक नहीं उपलब्ध कराया गया था. कॉमनवेल्थ खेल से सिर्फ पांच महीने पहले सभी खिलाड़ियों ने कोच के बिना तैयारी शुरू की. टीम ने लॉन बॉल्स फेडरेशन ऑफ इंडिया की मदद से स्वर्ण पदक के लिए तैयारी की.

महिला लॉन बॉल टीम

इस खेल को चार प्रारूपों एकल, युगल तीन खिलाड़ी और 4-प्रारूप (चार खिलाड़ी) में खेला जाता है. आलम यह है कि इस खेल की गेंद भी भारत में नहीं बनती. इसे ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड से मंगवाना पड़ता है. इसके बावजूद भारतीय महिला टीम ने इस खेल में जमकर मेहनत की और बिना किसी मदद के स्वर्ण पदक अपने नाम किया.

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रांची की लवली बताती हैं, भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी भी इस खेल को काफी पसंद करते हैं. जब देवड़ी माता के मंदिर जाते हैं तो अक्सर स्टेडियम में आकर हमारे कोच से मिलते हैं. उन्होंने (धोनी) हमें यह भी बताया है कि जब वह ऑस्ट्रेलिया जाते हैं तो लॉन बॉल खेलते हैं. लवली को उम्मीद है कि धोनी के बाद अब वह भी रांची की पहचान बनेंगी.

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