चेन्नई : वैसे तो खेल जगत के लोगों का कहना है कि फुटबॉल में लोगों के जीवन को बदलने की शक्ति है, लेकिन यह बात कभी-कभी कई लोग गंभीरता से नहीं लेते हैं. लेकिन चेन्नई में मौजूदा भारत अंडर-20 महिला राष्ट्रीय टीम कैंप में झारखंड की दो लड़कियों ने इस बात को चरितार्थ करके दिखाया है. उनका कहना है कि देश के लिए खेलना उनको गौरवान्वित कर रहा है. फुटबॉल उन्हें किसी भी चीज से ज्यादा, सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है.
झारखंड की रहने वाली महिला फुटबॉलर सुमति कुमारी और महिला फुटबॉलर अमीषा बक्ष्ला बाकी खिलाड़ियों से काफी अलग हैं. इन दो युवा लड़कियों के लिए फुटबॉल जीवन को बदलने वाला है. साथ ही यह उन्हें गहरी मानसिक शांति और संतुष्टि भी देता है. सुमति और अमीषा अब आगामी सैफ अंडर-20 महिला चैम्पियनशिप के लिए चेन्नई में होम गेम्स स्पोर्ट्स एरिना में प्रशिक्षण ले रही हैं, जो जिसे ढाका (बांग्लादेश) में 3 से 9 फरवरी 2023 तक खेला जाएगा.
ऐसा है सुमति का जज्बा
युवा खिलाड़ी सुमति अपने जीवन में पहले ही बहुत कुछ सह चुकी हैं, लेकिन हर बार जब वह किसी कष्ट या परेशानी की चपेट में आती थीं, तो वह केवल फुटबॉल पर ध्यान लगाती रहती थीं. इसने उनकी बहुत सारी पीड़ाएं मिटा दी हैं. उसी के कारण वह एक बेहतर फुटबॉलर बनने के लिए प्रेरित हो रही हैं और इसी के कारण वह और अधिक अधिक दृढ़ बनती जा रही हैं.
झारखंड के गुमला जिले की रहने वाली 19 वर्षीय सुमति कुमारी एक सामान्य परिवार की लड़की हैं, लेकिन खेल उनके नस-नस में समाया हुआ है. 2019 में जब उन्हें एक बड़ी व्यक्तिगत त्रासदी का सामना करना पड़ा था, तब भी उनका हौसला नहीं टूटा था, क्योंकि उन्होंने अपने खेल पर किसी और चीज को हाबी नहीं होने दिया. उनकी मां का निधन उनके लिए बड़ा झटका था. वह उस समय गोवा में राष्ट्रीय शिविर में शिरकत कर रही थीं. चूंकि उनके गांव में टेलीफोन कनेक्शन नहीं था, इसलिए उनको दो दिन बाद उनकी मां के निधन की खबर उनके पास पहुंची. मां की मौत से निराश सुमति के पास एक विकल्प था- अपने परिवार के पास घर वापस जाना या शिविर में रहकर देश के लिए खेलना. ऐसे में उन्होंने कैंप में रहने और देश के लिए खेलने का फैसला किया, क्योंकि वह जानती थीं कि देश के लिए खेलने से निश्चित रूप से उसकी मां को गर्व होगा.
सुमति बोलीं-
"जब मैं गोवा में थीं, तो मुझे दो दिनों के बाद मेरी मां की मौत की खबर मिली. मैं असहाय थी और इसके बारे में कुछ नहीं कर सकी. मेरे कोच ने मुझे घर जाने के लिए कहा, लेकिन मैंने रहने और देश के लिए खेलने का फैसला किया, क्योंकि इससे मुझे वह मानसिक शांति मिली, जिसकी मुझे तलाश थी. वह वास्तव में मेरे जीवन का एक कठिन दौर था. लेकिन मेरे सभी साथियों के साथ मैदान पर होने से मुझे अपने दर्द को कुछ हद तक भूलने की ताकत मिली."