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हमेशा ऊंचा रखा बलबीर सिंह सीनियर ने तिरंगा.. पूर्व डिफेंडर ने बताया उन्हें 'हीरो'

ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता और भारत के पूर्व डिफेंडर गुरबख्श सिंह ने कहा कि आप बलबीर सिंह सीनियर को भारत के महान गोलस्कोरर के तौर पर याद रख सकते हैं.

बलबीर सिंह सीनियर
बलबीर सिंह सीनियर

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Published : May 25, 2020, 5:58 PM IST

कोलकाता :एक पुरानी कहावत है कि उंगली पकड़ाओ तो पूरा हाथ पकड़ लेते हैं. महान हॉकी खिलाड़ी और बेहतरीन गोलस्कोरर बलबीर सिंह सीनियर भी ऐसे ही थे. ऐसा महान खिलाड़ी जो कहीं से भी गेंद को गोलपोस्ट में डाल दे. ये बेहतरीन कप्तान तीन बार ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा था.

बलबीर सिंह सीनियर ने सोमवार को 96 साल की उम्र में आखिरी सांस ली.

बलबीर सिंह सीनियर
वो भारत की उस स्वार्णिम पीढ़ी का हिस्सा थे जिसने 1948, 1952, 1956 में ओलंपिक स्वर्ण पदक अपने नाम किए. इसके अलावा 1956 में एशिया कप में भी सोने का तमगा जीता. 48 के ओलंपिक टीम के सदस्यों में से अभी तक जिंदा रहनेवाले वाले बलबीर सिंह दूसरे खिलाड़ी थे. उनके बाद इस टीम से अब सिर्फ एक शख्स जिंदा है और वो हैं केशव दत्त.ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता और भारत के पूर्व डिफेंडर गुरबख्श सिंह ने कहा, "आप उन्हें भारत के महान गोलस्कोरर के तौर पर याद रख सकते हैं."गुरबख्श बलबीर सिंह के साथ अपने शुरुआती दिनों में खेले थे. 84 साल के गुरबख्श ने बताया कि बलबीर विपक्षी खिलाड़ी को काफी कम मौका देते थे, लेकिन मैदान पर हमेशा शांत रहते थे. गुरबख्श ने कहा, "उस समय हीरो थे. बलबीर ज्यादा बोला नहीं करते थे, लेकिन वो शायद ही कभी आपा खोते थे. उनकी गोल करने की काबिलियत शानदार थी. वो काफी तेज मारते थे. वो ज्यादा ड्रिबल नहीं करते थे, लेकिन आधे मौकों को भी गोल में बदल देते थे. जब वो डी में हों तो एक डिफेंडर के रूप में आप उन्हें जरा सा मौका नहीं दे सकते थे."बलबीर के नाम ओलंपिक फाइनल में सबसे ज्यादा गोल करने का रिकॉर्ड है. उन्होंने 1952 के ओलंपिक खेलों में नीदरलैंड्स के खिलाफ खेले गए स्वर्ण पदक के मैच में पांच गोल किए थे. ये मैच भारत ने 6-1 से जीता था. उनका ये रिकॉर्ड अभी तक नहीं टूटा है.
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सन् 1948 में अपने ओलंपिक पदार्पण में उन्होंने अर्जेटीना के खिलाफ छह गोल किए थे. यह भी एक रिकॉर्ड है. वो जब भी टीम के साथ रहे, चाहे खिलाड़ी के तौर पर या कोच के तौर पर भारत ने हमेशा पोडियम हासिल किया. कोच रहते हुए उन्होंने भारत को 1975 में इकलौता विश्व कप दिलाया और 1971 में विश्व कप में कांस्य पदक भी दिलाया. सन् 1957 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया था. आज जब वे इस दुनिया में नहीं रहे, तब खेल प्रेमियों के दिल का दुख सोशल मीडिया पर साफ देखा जा सकता है. साथ ही देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से लेकर अन्य राजनेता भी उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं. बलबीर का जन्म 31 दिसंबर, 1923 में पंजाब के हरिपुर खालसा में हुआ था. उनके परिवारमें बेटी सुशबीर भोमिया, बेटे कंवलबीर और गुरबीर हैं.

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