नई दिल्ली:भारतीय क्रिकेट के इतिहास में महेंद्र सिंह धोनी ने साल 2017 में जब सीमित ओवरों की कप्तानी छोड़ी, तब विराट कोहली भारतीय क्रिकेट के बेताज बादशाह बन गए थे. अगले तीन साल तक उन्हें कोई चुनौती नहीं मिली और उनकी तूती ही बोलती रही. बीसीसीआई में मजबूत प्रशासन के अभाव में कोहली ही फैसले लेने लगे और भारतीय टीम के अच्छे प्रदर्शन को देखते हुए किसी ने ऐतराज भी नहीं जताया, हालांकि आईसीसी खिताब जीतने में वे नाकाम रहे.
फिर सौरव गांगुली और जय शाह ने साल 2019 में दुनिया के सबसे शक्तिशाली क्रिकेट बोर्ड की सत्ता की बागडोर संभाली. एक साल तक सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा. लेकिन साल 2020 विश्व कप के बाद कोहली ने टी-20 टीम की कप्तानी छोड़ने का फैसला किया. उनका वनडे टीम की कप्तानी छोड़ने का कोई इरादा नहीं था, लेकिन टूर्नामेंट से भारत की जल्दी रवानगी के बाद यह लगभग तय हो गया था.
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कोहली से वनडे टीम की कप्तानी छिनी गई, जिसके बाद गांगुली और उनके मतभेद उजागर हो गए. दोनों ने एक दूसरे के बयानों का सार्वजनिक तौर पर खंडन किया. सीमित ओवरों की कप्तानी अब रोहित शर्मा को सौंप दी गई. अपने सुनहरे कैरियर में 70 अंतरराष्ट्रीय शतक जमा चुके कोहली को किसी को कुछ साबित नहीं करना है. लेकिन दो साल से बतौर बल्लेबाज उनके औसत फॉर्म और बीसीसीआई से मतभेद के बाद अब वह जरूर दिखाना चाहेंगे कि उन्हें दुनिया का सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज क्यों माना जाता है.
टी-20 विश्व कप से भारत के जल्दी बाहर होने के साथ ही कोहली और रवि शास्त्री का दौर भी खत्म हो गया. कोहली की अगुवाई वाली टेस्ट टीम की क्षमता पर किसी को संदेह नहीं था, लेकिन विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप फाइनल में न्यूजीलैंड के हाथों हार से निराशा हाथ लगी. भारत ने शानदार प्रदर्शन करते हुए फाइनल में जगह बनाई, लेकिन न्यूजीलैंड ने खिताबी मुकाबले में उसे उन्नीस साबित कर दिया.
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भारत ने इस साल आस्ट्रेलिया में लगातार दूसरी सीरीज जीती. यह जीत इसलिये भी अहम थी, क्योंकि खिलाड़ियों की चोटों से जूझ रही भारतीय टीम के पास प्रमुख खिलाड़ी भी ब्रिसबेन में निर्णायक मैच में उतारने के लिए नहीं थे. एडीलेड टेस्ट में 36 रन पर सिमटने के बाद भारतीय टीम ने जिस तरह वापसी करके सीरीज जीती, यह विजयगाथा क्रिकेट की किवदंतियों में शुमार हो गई. ब्रिसबेन में आस्ट्रेलिया 33 साल बाद कोई टेस्ट हारा.