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Shikhar Dhawan को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट से मिली राहत, 3 साल बाद बेटे से मिल पाएंगे धवन - zoravar dhawan

भारत के बाएं हाथ के धाकड़ बल्लेबाज शिखर धवन को कोर्ट से राहत मिली है. धवन के अपने बेटे जोरावर धवन से मिलने की दलील को कोर्ट ने गलत ठहराया है और कहा है कि बच्चे पर अकेले मां का अधिकार नहीं है.

shikhar dhawan with his son zoravar dhawan
शिखर धवन और उनके बेटे जोरावर धवन

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Published : Jun 8, 2023, 5:58 PM IST

नई दिल्ली : दिल्ली की एक अदालत ने कहा कि अकेले मां का बच्चे पर विशेष अधिकार नहीं होता है और क्रिकेटर शिखर धवन से अलग हो चुकी पत्नी आयशा मुखर्जी को आदेश दिया है कि वह अपने नौ साल के बेटे को एक पारिवारिक मिलन के लिए भारत लाएं. दोनों ने तलाक और बच्चे की कस्टडी को लेकर भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों जगहों पर कानूनी कार्यवाही शुरू कर दी है.

पटियाला हाउस कोर्ट के जस्टिस हरीश कुमार ने बच्चे को भारत लाने पर आपत्ति जताने के लिए मुखर्जी को फटकार लगाई. फैमिली कोर्ट को बताया गया कि धवन के परिवार ने अगस्त 2020 से बच्चे को नहीं देखा है. पारिवारिक मिलन पहले 17 जून के लिए निर्धारित किया गया था, लेकिन बच्चे के स्कूल की छुट्टी को देखते हुए इसे 1 जुलाई तक के लिए स्थगित कर दिया गया. हालांकि, मुखर्जी ने फिर से आपत्ति जताते हुए दावा किया कि यह आयोजन असफल होगा क्योंकि नई तारीख के बारे में कई विस्तारित परिवार के सदस्यों से सलाह नहीं ली गई थी.

न्यायाधीश ने कहा कि भले ही धवन ने अपने विस्तारित परिवार से परामर्श नहीं किया, इसके गंभीर परिणाम नहीं होंगे. न्यायाधीश ने स्वीकार किया कि बच्चा अगस्त 2020 से भारत नहीं आया है और धवन के माता-पिता तथा परिवार के अन्य सदस्यों को बच्चे से मिलने का अवसर नहीं मिला है. इसलिए जज ने बच्चे के अपने दादा-दादी से मिलने की धवन की इच्छा को वाजिब माना. न्यायाधीश ने बच्चे को भारत में धवन के घर और रिश्तेदारों से परिचित न होने देने के मुखर्जी के तर्को पर सवाल उठाया. बच्चे के स्कूल की छुट्टी और इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि बच्चा धवन के साथ सहज है, न्यायाधीश ने बच्चे को भारत में कुछ दिन बिताने के उनके अनुरोध को यथार्थवादी पाया. न्यायाधीश ने कहा कि धवन से मिलने में बच्चे की सहजता के बारे में मुखर्जी की चिंताओं को स्थायी कस्टडी की कार्यवाही के दौरान नहीं उठाया गया था और दोनों पक्ष मुकदमेबाजी के लिए एक-दूसरे को दोषी ठहरा रहे हैं.

अदालत ने कहा, परिवार के भीतर महौल खराब करने का दोष दोनों को साझा करना होगा. विवाद तब पैदा होता है जब एक को चिंता होती है और दूसरा उस पर ध्यान नहीं देता है. अदालत ने कहा कि बच्चे पर अकेले मां का अधिकार नहीं होता है. तब वह याचिकाकर्ता का अपने ही बच्चे से मिलने का विरोध क्यों कर रही है जबकि वह बुरा पिता नहीं है.

अदालत ने स्पष्ट किया कि धवन वर्तमान आवेदन में बच्चे की स्थायी हिरासत की मांग नहीं कर रहे हैं, बल्कि मुखर्जी के खर्च पर केवल कुछ दिनों के लिए बच्चे को भारत में रखना चाहते हैं. अदालत ने कहा, खर्च पर उसकी आपत्ति उचित हो सकती है और परिणामी आपत्ति ठीक हो सकती है लेकिन उसकी अनिच्छा को उचित नहीं ठहराया जा सकता. वह यह नहीं बता पाई है कि बच्चे को लेकर याचिकाकर्ता के बारे में उसके मन में क्या डर है और उसने उसे वॉच लिस्ट में डालने के लिए ऑस्ट्रेलिया में अदालत का दरवाजा क्यों खटखटाया. अगर याचिकाकर्ता को बच्चे की कस्टडी लेने के लिए कानून अपने हाथ में लेने का इरादा होता तो वह भारत में अदालत से संपर्क नहीं करता. जब उसका डर स्पष्ट नहीं है तो याचिकाकर्ता को अपने बच्चे से मिलने की अनुमति देने को लेकर उसकी आपत्ति को सही नहीं ठहराया जा सकता.

(आईएएनएस)

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