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गौतम गंभीर अपनी कप्तानी में खिलाड़ियों को खुलकर खेलने देते हैं: रोबिन उथप्पा

गौतम गंभीर की कप्तानी की तारीफ करते हुए रोबिन उथप्पा ने कहा, "उन्होंने इस बात को सुनिश्चित किया कि वह बाहर बैठने वाले खिलाड़ियों के साथ अच्छा-खासा समय बिताएं, उनके साथ ट्रेनिंग करें, खाना खाएं, ताकि वे अकेला न महसूस करें."

Gautam Gambhir and Robin Uthappa
Gautam Gambhir and Robin Uthappa

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Published : Jun 5, 2020, 10:53 AM IST

नई दिल्ली:रोबिन उथप्पा कोलकाता नाइट राइडर्स की टीम का अहम हिस्सा हुआ करते थे. गौतम गंभीर की कप्तानी में टीम ने दो बार आईपीएल का खिताब जीता था और उथप्पा ने उसमें अहम रोल निभाया था. इस साल हालांकि उथप्पा राजस्थान रॉयल्स में आ गए हैं.

उथप्पा ने कहा है कि गंभीर की कप्तानी की सबसे अच्छी बात यह थी कि वह खिलाड़ियों को खुलकर खेलने देते थे और सभी को एक परिवार के हिस्से के तौर पर महसूस कराते थे.

उथप्पा ने एक शो पर कहा, "मुझे जो सबसे ज्यादा उनकी बात पसंद आई वह यह थी कि वह लोगों को खुलने देते और किसी के खेल में रोक-टोक नहीं करते थे. उन्होंने इस बात को सुनिश्चित किया था कि टीम में सुरक्षा की भावना रहे जो मुझे लगता है कि आईपीएल जैसे बड़े टूर्नामेंट्स को जीतने के लिए काफी अहम है और यही सफल कप्तान करते हैं."

गौतम गंभीर

उन्होंने कहा, "टूर्नामेंट जीतने के मेरे अनुभवों में मैंने देखा है कि सफल कप्तान खिलाड़ियों को खुलकर खेलने देते हैं और यह आश्वस्त करते हैं कि टीम में हर कोई सुरक्षित महूसस करे."

दाएं हाथ के इस बल्लेबाज ने कहा, "इसलिए वह उन खिलाड़ियों से भी लगातार बात करते रहते हैं जो खेल नहीं रहे होते. आईपीएल जैसे टूर्नामेंट में आपको खिलाड़ियों को बांधने की जरूरत है. जो लोग नहीं खेल रहे होते वे भी टीम बनाने में बड़ा रोल निभाते हैं और टीम में सही ऊर्जा लेकर आते हैं. उन्होंने इस बात को सुनिश्चित किया कि वह बाहर बैठने वाले खिलाड़ियों के साथ अच्छा-खासा समय बिताएं, उनके साथ ट्रेनिंग करें, खाना खाएं, ताकि वे अकेला न महसूस करें."

आईपीएल ट्रॉफी के साथ रोबिन उथप्पा और गौतम गंभीर

वहीं, भारत की 2007 टी20 विश्व कप विजेता टीम के अहम सदस्य रहे रॉबिन उथप्पा ने बताया कि अपने करियर में वह दो साल तक अवसाद (डिप्रेशन) और आत्महत्या के ख्यालों से जूझते रहे, तब क्रिकेट ही एकमात्र वजह थी जिसने उन्हें बालकनी से कूदने से रोका.

उन्होंने कहा, "मुझे याद है 2009 से 2011 के बीच यह लगातार हो रहा था और मुझे रोज इसका सामना करना पड़ता था. मैं उस समय क्रिकेट के बारे में सोच भी नहीं रहा था. मैं उन दिनों में इधर उधर बैठकर यही सोचता रहता था कि मैं दौड़कर जाऊं और बालकनी से कूद जाऊं. लेकिन किसी चीज ने मुझे रोके रखा."

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