हैदराबाद: भारतीय टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया है. उन्होंने इंस्टाग्राम पोस्ट के जरिए अपने संन्यास की घोषणा की. झारखंड के शहर रांची से निकलकर धोनी ने एक खिलाड़ी के तौर पर वो सब हासिल किया जो हर खिलाड़ी का सपना होता है. हालांकि ये सफर इतना भी आसान नहीं रहा. इस बीच माही ने ना जाने कितने ही उतार-चढ़ाव देखे पर कभी रूके नहीं. उनके इसी जज्बे ने उन्हें ना सिर्फ एक बेहतरीन क्रिकेटर बनाया बल्कि भारत का सबसे सफल कप्तान भी बनाया.
7 जुलाई 1981 को जन्मे धोनी ने स्कूल के दिनों में ही क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था. मात्र 18 साल की उम्र में उन्हें बिहार की रणजी टीम में जगह मिल गई. इसके बाद धोनी रेलवे के लिए भी खेले.
ऐसे शुरु हुआ अंतरराष्ट्रीय करियर
साल 2003 में जिम्बाब्वे और केन्या के दौरे पर माही को टीम इंडिया ए में जगह मिली थी. इस मौका का धोनी ने भरपूर फायदा उठाया. खेले गए सात मैचों में धोनी ने 362 रन बनाए और साथ ही अपने विकेट कीपिंग का भी अदभुत नमुना पेश किया. इस दौरान उन्होंने सात कैच लपके और चार स्टंपिंग की.
धोनी के इस प्रदर्शन ने पिछले छह साल से विकेट कीपर की तालाश में जुटे भारतीय टीम के सिलेक्टरर्स का ध्यान खींचा. इस तरह 2004 में धोनी का टीम इंडिया के साथ सफर शुरू हो गया. वैसे ये शुरुआत कहीं ना कहीं तत्कालीन कप्तान सौरव गांगुली की देन थी. उन्होंने ही धोनी को पहला मौका दिया था. बस फिर क्या था.. यहां के बाद धोनी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
कुछ खास नहीं रही शुरुआत
बांग्लादेश के खिलाफ चटगांव में महेंद्र सिंह धोनी ने अपना अंतरराष्ट्रीय डेब्यू किया. पूरी सीरीज में धोनी का बल्ला खामोश रहा. तीन मौचों में उन्होंने मात्र 19 रन बनाए थे. धोनी को पहचान 2005 में हुए पाकिस्तान टीम के भारतीय दौरे पर मिली. हालांकि इस सीरीज के भी पहले मैच में धोनी तीन रन पर आउट हो गए थे. इसके बाद विशाखापत्तनम में धोनी के खामोश बल्ले ने गरजना शुरू किया. तीसरे नंबर पर बल्लेबाजी के लिए आए धोनी ने इस मैच में 123 गेंदों पर 148 रन की पारी खेली और भारत को 58 रन से जीत दिलाई. माही ने यहां से एक के बाद एक लगातार बड़ी पारियां खेली और टीम का अहम हिस्सा बन गए.
बखूबी संभाली कप्तानी की जिम्मेदारी
साल 2007 में में धोनी को पहली बार कप्तानी की जिम्मेदारी सौंपी गई. उसी साल टी20 विश्व कप का पहला संस्करण खेला जाना था. एक बिल्कुल युवा टीम के साथ धोनी इस टूर्नामेंट में उतरे थे. एक एक करके ये युवा ब्रिगेड सभी टीमों के धूल चटाते हुए फाइनल में पहुंची. फाइनल मुलाबला दो लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण था. एक तो धोनी के लिए बतौर कप्तान ये पहला बड़ा टूर्नामेंट का फाइनल था और दूसरा भारतीय टीम अपने चीर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान से भिड़ने वाला था.