हैदराबाद :30 वर्षीय सारा ने साल 2006 में इंग्लैंड के लिए डेब्यू किया था जिसके बाद से ही उन्होनें विश्व क्रिकेट में 6,533 रन बनाकर अपनी छाप छोड़ी. इसके अलावा बतौर विकेटकीपर सारा का कद इतना ऊंचा है कि उनकी तुलना विश्व क्रिकेट के महानतम विकेटकीपरों में से एक भारतीय विकेटकीपर महेंद्र सिंह धोनी से की जाती है. इतना बेहतरीन क्रिकेट करियर होने के बावजूद सारा को डिप्रेशन के आगे घुटने टेकने पड़े.
पिछले लगभग आठ सालों में सारा ने कई बार डिप्रेशन के चलते क्रिकेट से ब्रेक लिया. इस डिप्रेशन के दौर में इंग्लैंड की टीम और कोच ने सारा को क्रिकेट खेलने या उससे दूर रहने की पूरी आजादी दी.
इन सबके बावजूद सारा डिप्रेशन से बाहर नहीं आ सकी और उन्होनें बीती रात प्रेस कॉन्फ्रेंस करके संन्यास ले लिया लेकिन मानसिक तनाव के चलते अपने करियर को अलविदा कहने के मामले में सारा अकेली नहीं हैं. कई ऐसे क्रिकेटर या एथलीट रहे हैं जिन्होंने ऐसे ही कारणों के चलते अपने आपको खेल की दुनिया से अलग कर दिया.
माइकल फेल्प्स
सबसे ज्यादा 28 ओलम्पिक मेडल अपने नाम करने वाले अमेरिकी तैराक माइकल फेल्प्स को 2012 लंदन ओलंपिक के बाद डिप्रेशन का सामना करना पड़ा. जिसको उन्होंने कई बार दुनिया के सामने रखा. माइकल ने कहा, "मैं शुक्रगुजार हूं कि मैने डिप्रेशन के चलते अपनी जान नहीं ली"
फेल्प्स ने कहा कि उन्हें नहीं पता की ये उनके साथ ऐसा क्यों हो रहा है लेकिन वो अपनी जिंदगी के जिस चरण से गुजर रहे हैं उससे वो निकलना चाहते हैं.
सूजी बेट्स
न्यूजीलैंड की ऑलराउंडर सूजी बेट्स ने कहा कि मानसिक स्वास्थ के लिए क्रिकेट एक बेहद खराब खेल है, ऐसा मुझे लगता है. सूजी न्यूजालैंड की मैच विनर खिलाड़ी मानी जाती हैं पर मानसिक तनाव को उन्होनें 2018 में मीडिया के सामने रखा.
एंड्रयू फ्लिंटॉफ
एशेज 2005 के हीरो, इंग्लिश ऑलराउंडर एंड्रयू फ्लिंटॉफ ने संन्यास के बाद मीडिया को दिए इंटरव्यू में कहा कि 2011 से पहले वो डिप्रेशन से परेशान थे. फ्रेडी फ्लिंटॉफ का मानना है कि उनकी 15-20% जिंदगी डिप्रेशन से प्रभावित हो चुकी है.
मोंटी पनेसर
इंग्लैंड के बाए हाथ के स्पिन गेंदबाज मोंटी पनेसर ने भी माडिया के साथ बातचीत कर बताया था कि कैसे वो अवसाद का शिकार हुए. पहले वो दवाईयों पर भरोसा नहीं करते हैं लेकिन अवसाद का शिकार होते ही उन्होनें डॉक्टर से बात कर तुरंत इसका इलाज करने में लग गए. मोंटी ने कहा कि सबको अवसाद के बारे में बात करनी चाहिए इससे इस चरण से बाहर निकलने में मदद मिलती है.