रायपुर :25 अक्टूबर को दिल्ली में होने वाले राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में छत्तीसगढ़ में बनी फिल्म 'भूलन द मेज' (Bhulan The Maze) को भी राष्ट्रीय पुरस्कार दिया जाएगा. इस फिल्म के निर्माता-निर्देशक मनोज वर्मा को यह पुरस्कार उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू प्रदान करेंगे. पुरस्कार ग्रहण करने दिल्ली रवाना होने से पहले हमने मनोज वर्मा जी से खास बातचीत की.
सवाल- 'भूलन द मेज' पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म है, जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है. हम इस फिल्म के निर्देशक मनोज वर्मा जी (Producer Director Manoj Verma) से फिल्म के विषय में तो बात करेंगे ही, पहले जानते हैं कि वे किस तरह फिल्म जगत से जुड़े ?
जवाब- सबसे पहले मेरा स्टूडियो था. शौकिया तौर पर मैंने एक फिल्म बनाकर अपने कैरियर की शुरुआत की थी. बाद में प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ी फिल्मों के निर्देशक सतीश जैन जी की एक फिल्म को एडिट करने का मौका मिला. उस दौरान उन्होंने कहा कि मेरे अंदर डायरेक्टर का सेंस है और मुझे उसी दिशा में काम करना चाहिए. इसके बाद मैंने डायरेक्शन क्षेत्र में काम करना शुरू किया.
सवाल- क्या अब छत्तीसगढ़ी फिल्म जगत के लिए फिर से एक नई शुरुआत आपने कर दी है. राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म बनाकर ?
जवाब-इस बीच में भी कई अच्छी फिल्में आईं, लेकिन जो लोग मसाला फिल्मों से हटकर छत्तीसगढ़ी फिल्म (chhattisgarhi movie) बनाना चाहते हैं, उनके लिए नई दिशा की शुरुआत हो गई है, ऐसा माना जा सकता है. ऐसी फिल्में बनाना भी चुनौतीपूर्ण है.
इस फिल्म का निर्माण साल 2016 में हुआ. इसके बाद कई फिल्म फेस्टिवल में इसे दिखाया गया. अब इसे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा जा रहा है. अभी भी कमर्शियल वैल्यू की मूवी ज्यादा चल रही है, लेकिन यह फिल्म लोग पसंद करेंगे; ऐसी उम्मीद है. अब ऐसी फिल्मों का निर्माण और किया जाए या नहीं, यह अप्रैल में सिनेमाघरों में इस फिल्म को दिखाने के बाद दर्शकों से मिले रिस्पांस पर निर्भर करता है. हालांकि मैंने इस फिल्म को जुनूनी तौर पर बनाया है.
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सवाल - इस फिल्म की कहानी के विषय में आपने कैसे सोचा ?
जवाब - यह उपन्यास पर आधारित कहानी है. उपन्यास से स्क्रिप्ट लिखने में काफी समय लगा. कोशिश यह भी रही कि उपन्यास की आत्मा भी नहीं मरनी चाहिए और फिल्म उपन्यास भी नहीं लगनी चाहिए. यह बड़ी चुनौती थी. इस फिल्म का कांसेप्ट मुझे यूनिक लगा, जिसके बाद मैंने इस पर काम शुरू किया.
सवाल - शूटिंग के दौरान के अनुभव के बारे में बताइए ?
जवाब -गरियाबंद के पास एक गांव है, जिसे मैंने काफी पहले देखा था. काफी साफ सुथरा था. उपन्यास में गांव का जिक्र आने के बाद मुझे उसी गांव की सबसे पहले याद आई, जिसे ढूंढते हुए हम वहां पहुंचे. ग्रामीणों ने भी काफी सहयोग किया. इस फिल्म में ग्रामीणों ने आर्टिस्ट की तरह काम किया और हमने भी उन्हें आर्टिस्टों की तरह भुगतान भी किया. एक तरह से ग्रामीण और हमारे आर्टिस्ट सभी गांव के ही हिस्से बन गए थे.
सवाल - शूटिंग के दौरान किस प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ा ?
जवाब - हमारी यूनिट को एक शेड में रहना पड़ा, जहां के पाइप में आते-जाते सांप आसानी से दिख जाते थे. तेंदुआ के आतंक की भी बात ग्रामीण करते रहते थे.
सवाल - राज्य सरकार ने भी आपको एक करोड़ रुपये देने की घोषणा की है ?