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नहीं रहीं भोजपुरी की पहली अभिनेत्री और बॉलीवुड की 'कुमकुम' - kumkum

बॉलीवुड की मशहूर अदाकारा कुमकुम का निधन हो गया है. इस खबर से बॉलीवुड इंडस्ट्री में शोक की लहर है. कुमकुम बिहार के शेखपुरा में जन्मीं थीं.

veteran bollywood actor kumkum passes away
नहीं रहीं भोजपुरी की पहली अभिनेत्री और बॉलीवुड की 'कुमकुम'

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Published : Jul 28, 2020, 10:33 PM IST

शेखपुरा :शेखपुरा जिले के अरियरी प्रखंड हुसैनाबाद गांव के नवाब खानदान की बॉलीबुड एक्ट्रेस कुमकुम का दिल का दौरा पड़ने से मुंबई में निधन हो गया है. वह 86 साल की थीं. उनकी मौत की पुष्टि हुसैनाबाद में रह रहे भतीजे असद रज्जा ने की. कुमकुम हुसैनाबाद नबाब की बेटी थीं.

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शेखपुरा के हुसैनाबाद गांव में 1934 में जन्मीं कुमकुम रियासत के समय में ही मुंबई में पढ़ाई के लिए चली गयी थीं और वहीं से उन्होंने फिल्मी दुनिया में अपनी पहचान बनाई. इस दौरान अभिनेत्री कुमकुम कई बार अपने वतन हुसैनाबाद को देखने आती रहती थीं. अंतिम बार सिने स्टार कुमकुम साल 2010 के फरवरी माह में शेखपुरा आई थीं. उस समय उन्होंने अपने भतीजे एवं स्थानीय लोगों से मुलाकात भी की थी. फिलहाल, सैय्यद असद रजा पूरे राजघराने की देखभाल कर रहे हैं. साथ ही देखरेख में इसके दो छोटे भाई सैय्यद मुसी रजा तथा सैय्यद कायम रजा भी सहयोग दे रहे हैं.

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भोजपुरी की पहली फिल्म में किया अभिनय

1963 में रिलीज हुई भोजपुरी भाषा की पहली फिल्म 'गंगा मइया तोहे पियारी चढाइबो' में कुमकुम ने बतौर अभिनेत्री काम किया था. इस लिहाज से कुमकुम भोजपुरी सिनेमा की पहली अभिनेत्री हुईं.

  • कुमकुम ने अपने फिल्मी करियर में ललकार, मदर इंडिया, प्यासा, आर पार, मिर्जा गालिब, मिस्टर एंड मिसेज 55, कुंदन, फंटूश, सीआईडी, नया दौर, कोहिनूर, दिल भी तेरा हम भी तेरे, मिस्टर एक्स इन बॉम्बे, राजा और रंक, आंखें, जलते बदन और ललकार जैसी फिल्मों में काम किया था.
  • शेखपुरा के पूर्व चैयरमेन गंगा कुमार यादव, जिला क्रिकेट एशोशिएशन संघ के अध्यक्ष मदनलाल, लोजपा जिलाध्यक्ष इमाम गजाली आदि ने शोक प्रकट किया है.
  • कुमकुम ने अपने करियर में लगभग 115 फिल्मों में अभिनय किया.
  • उन्होंने किशोर कुमार और गुरु दत्त जैसे स्टार्स के साथ भी काम किया था.

पूर्वजों ने कोलकाता से शेखपुरा रेल लाइन का कराया था विस्तार

सन 1897 ई. में नबाब बहादुर अली खां ने कोलकता से लेकर गया तक रेल लाइन का कार्य शुरू किया था. उसी दौरान इनकी हालत बिगड़ने लगी और कोलकता में इलाज के लिए भर्ती कराया गया, जहां इलाज के दौरान इनकी मौत हो गयी. उस समय रेल लाइन बिछ चुकी थी, लेकिन रेल परिचालन शुरू नहीं हुआ. कोलकता में पदस्थापित तत्कालीन गवर्नर जनरल के आदेश पर स्पेशल ट्रेन सैलून से उनकी शव को हुसैनाबाद लाया गया था.

कहा जाता है कि उस वक्त नबाब साहब का रियासत चलता था और दरबार भी लगाया जाता था. जिसमें फरियादी लोग नालंदा, राजगीर, मुजफफरपुर, पटना, हजारीबाग, गया, सीतामढ़ी, मुंगेर, हाजीपुर सहित दर्जनों जिलों के लोग फरियाद लेकर आते थे. यहां तक की अपनी जनता का हाल जानने के लिए नबाब साहब डोली पर बैठकर विभिन्न क्षेत्रों का दौरा करते थे और जनता की समस्या का निदान भी करते थे.

चर्चित है कहावतें ?
कहते है कि ठंडी के दिनों में ठंड की वजह से आस-पास के इलाकों में सियार का आवाज करता था, तब नवाब ने अपने मंत्रियों को बुलाकर पूछा की रात में सियार आवाज क्यों करता है, तो मंत्रियों ने कहा था कि ठंड के कारण सियार आवाज करता है. यह सुनकर नबाब ने हजारों कम्बल बंटवाया था. यह कहानी आज भी बूढ़े-बुजुर्ग चाव से बच्चों को सुनाते है.

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