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बॉलीवुड में आज के दौर की मांएं दर्शकों को अधिक प्रभावशाली लगती हैं : सीमा पाहवा

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Published : May 17, 2020, 8:21 PM IST

अभिनेत्री सीमा पाहवा ने फिल्मों में आज के जमाने की मां और पहले के जमाने की मां की तुलना करते हुए कहा कि आज के दौर की मांएं दर्शकों को अधिक प्रभावशाली लगती हैं. जबकि पहले मां के किरदार को बेहद आदर्शवादी और दुखद दिखाया जाता था, जिसके कारण दर्शक अच्छे से खुद को कनेक्ट नहीं कर पाते थे.

Seema pahwa says new moms on bollywood screen more impacyful relatable
बॉलीवुड में आज के दौर की मांएं दर्शकों को अधिक प्रभावशाली लगती हैं : सीमा पाहवा

मुंबई : बॉलीवुड अभिनेत्री सीमा पाहवा ने अपने अब तक के करियर में 'बरेली की बर्फी' और 'शुभ मंगल सावधान' सहित कई फिल्मों में अपने शानदार अभिनय का प्रदर्शन किया है.

ऐसे में वह फिल्मों में आज के जमाने की सबसे पसंदीदा मांओं में से एक बनकर उभरी हैं. उनका मानना है कि फिल्मों में नए दौर की मांएं दर्शकों को अधिक प्रभावशाली लगती हैं और वह उन्हें अपनी जिंदगी से जोड़कर भी देख पाते हैं.

बॉलीवुड में पहले और आज के जमाने की मांओं के बीच तुलना करते हुए वह कहती हैं, "पहले मां के किरदार को बेहद आदर्शवादी और दुखद दिखाया जाताथा, लेकिन आधुनिक पीढ़ी की मांओं के सामान्य होने, एक साधारण जिंदगी जीनेऔर हर चीज के प्रति एक यर्थाथवादी दृष्टिकोण के अपनाने की उम्मीद की जाती है. मुझे लगता है कि नए दौर की मांएं दर्शकों को अधिक प्रभावशाली लगती हैं और वह उनसे अधिक जुड़ाव भी महसूस कर पाते हैं."

हालांकि बॉलीवुड की कुछ बीते दिनों की मांओं के प्रति भी वह सम्मान भाव रखती हैं.

वह कहती हैं, "मुझे दुर्गा खोटेजी बहुत पसंद है, जिन्होंने कई फिल्मों में मां का किरदार निभाया है. वह जिस तरह से परफॉर्म करती थीं और अभिनय के प्रति उनकी समझ की मैं कायल हूं."

सीमा हाल ही में मानसी जैन की शॉर्ट फिल्म 'एवरीथिंग इज फाइन' में एक मां के किरदार में नजर आईं.

इसके बारे में वह कहती हैं, "रॉयल स्टैग बैरल सिलेक्ट लार्ज शॉर्ट फिल्म्सद्वारा जारी लघु फिल्म में मैंने जिस किरदार को निभाया है, वह बेहद हटकर है. मानसी ने आशा (उनका निभाया किरदार) को एक जैसा न दिखाकर बेहतरीन काम किया है."

वह आगे कहती हैं, "दूसरी बात यह है कि मुझे इसका अंत बेहद पसंद आया. यह दर्शकों के दिमाग में एक सवालिया निशान छोड़कर जाती है कि किस हद तक महिलाएं, मांएं और पत्नियों को कई बार उनके खुद के परिवार में हीअदृश्य समझा जाता है और उनकी आवश्यकताओं व इच्छाओं पर ध्यान नहीं दिया जाता है."

इनपुट-आईएएनएस

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