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बाजार में सुशांत सिंह राजपूत पर 'क्विक फिक्स' किताबों की बाढ़ - Sushant Singh Rajput death case

सुशांत सिंह राजपूत के निधन के बाद उनके जीवन पर आधारित कई किताबें बाजार में उपलब्ध हैं. जिनमें लोग काफी रुचि दिखा रहे हैं. ज्यादातर पुस्तकें हार्ड कॉपी और ई-बुक प्रारूप में उपलब्ध हैं.

Quickfix books on Sushant Singh Rajput flood the market
बाजार में सुशांत सिंह राजपूत पर 'क्विक फिक्स' किताबों की बाढ़

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Published : Aug 22, 2020, 12:44 PM IST

मुंबई : दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के बारे में उनकी मौत के बाद लोगों में बढ़ती उत्सुकता को देखते हुए पिछले कुछ महीनों में बाजार में उनसे जुड़ी कई पुस्तकों की बाढ़ आ गई है.

गौरतलब है कि 34 वर्षीय अभिनेता को 14 जून को उनके मुंबई स्थित आवास में मृत पाया गया था. उनकी मृत्यु के तुरंत बाद जारी की गई पुस्तकें हार्ड कॉपी और ई-बुक प्रारूप में उपलब्ध हैं.

सुशांत के सुर्खियों में बने रहने के कारण आमतौर पर लोग दिवंगत अभिनेता से जुड़ी जानकारियों के बारे में अधिक जानने को लेकर उत्सुक हैं.

बाजार में उपलब्ध किताबों में अधिकांशत: यह बताया गया है कि वह किस तरह के इंसान थे, उनके विचार कैसे थे, उनका लक्ष्य और महत्वाकांक्षाएं क्या थी, उनका व्यक्तिगत जीवन, पेशेवर जीवन, संघर्ष, दिल टूटने की वजह, असफलता और सफलता, और भी बहुत कुछ शामिल है.

हालांकि इनमें से अधिकांश पुस्तकें ऐसी हैं, जिसे जल्दबाजी में जारी की गई हैं, और बहुत ही निम्न स्तर का शोध नजर आ रहा है. इन किताबों में जमीनी स्तर पर काम नहीं किया गया है, न ही सटीक जानकारी दी गई हैं. वहीं अभिनेता की मौत का मामला अभी भी सुलझाना बाकी है. वहीं इन किताबों के लेखकों ने यह स्वीकार भी किया है कि वे अभिनेता से कभी मिले तक नहीं.

ऐसी ही एक किताब है जिसका शीर्षक है 'द लीजेंड सुशांत सिंह राजपूत: द हाइट ऑफ नेशनल ट्रेजर'. इसे दिल्ली के लेखक प्रदीप शर्मा ने लिखा है, जिन्होंने विलकिंग उपनाम से किताब लिखी है. शर्मा की किताब 16 जुलाई को प्रकाशित हुई. वहीं लेखक का दावा है कि वह सुशांत को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते थे, लेकिन अभिनेता की मृत्यु के बाद उन्होंने दिवंगत अभिनेता पर एक किताब लिखा.

शर्मा ने आईएएनएस से कहा, "मैं एसएसआर को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता था, न ही मैं कभी उनसे मिला था. लेकिन, जब मैंने उनकी मृत्यु की खबर के बारे में सुना, तो मैं इसे स्वीकार नहीं कर पाया और मुझे बहुत बेचैनी होने लगी. तब मैंने सोचा कि मैं एक ब्लॉग या एक लेख लिखूंगा और इसे सोशल मीडिया पर पोस्ट करूंगा. लेकिन बाद में मेरे साथ यह हुआ कि मैं श्रद्धांजलि के रूप में उन पर एक किताब ही लिख सकता हूं."

लेखक ने आगे दावा किया, "यह किताब बस इस बारे में है कि उनके मरने के बाद एक बहुत बड़ा प्रशंसक होने के नाते मुझे क्या महसूस हुआ और वह मुझे कैसे प्रेरित करते हैं. आप किताब में उनकी उपलब्धियों, जुनून, नई चीजों के बारे में जानने की लालसा, उनके सपनों और कैसे वह दूसरों की मदद के लिए आगे रहते थे, ये सब देखेंगे. संक्षिप्त रूप से यह एसएसआर के लिए श्रद्धांजलि है."

हालांकि शर्मा ने स्वीकार किया कि उन्हें व्यापक तौर पर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है. वह इसलिए क्योंकि उन पर 'पैसे कमाने और रातों रात प्रसिद्धि पाने' के आरोप लगे.

ऐसे ही एक लेखक हर्षवर्धन चौहान द्वारा हिंदी में लिखी गई एक किताब का शीर्षक 'सुशांत सिंह राजपूत : मिस्ट्री' है. हालांकि ऑनलाइन शॉपिंग साइट पर उपलब्ध किताब के विवरण में उनकी वर्तनी और व्याकरण संबंधी गलतियां स्पष्ट रूप से नजर आ रही हैं. उन्होंने विवरण में दावा किया है कि अभिनेता की हत्या के रहस्य को सुलझा लिया है, वहीं यह किताब 29 जुलाई को सुशांत की मृत्यु के एक महीने बाद ही प्रकाशित हो गई थी.

वहीं कुशाल चावला ने 'सुशांत डिप्रेशन स्टोरी: पॉसिबल रीजन बिहाइंड सुशांत डिप्रेशन' शीर्षक से एक किताब लिखी है. लेखक ने इसे 'एक छोटी पुस्तक' के रूप में वर्णित किया है जो आपको सुशांत के अवसाद पर कहानियां बताती है. उनका कहना है कि मैंने यह पुस्तक इसलिए लिखी है, क्योंकि मुझे लगता है कि उनकी अवसाद की कहानी दुनिया को बताई जानी चाहिए. किताब के अंत एक महत्वपूर्ण संदेश है और मुझे लगता है कि उसे पढ़ने के बाद लोगों का सिनेमा के प्रति नजरिया बदल जाएगा. हालांकि, चावला यह नहीं बता पाए कि अभिनेता की मौत का कारण आत्महत्या ही रही है.

मजेदार बात तो यह है कि इनमें से अधिकांश किताबों और उनके लेखकों में बाजार में पहले छाने की होड़ लगी है, और वे सभी पुलिस की धारणा से जुड़े हैं कि सुशांत ने आत्महत्या की थी.

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फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अभिनेता की मौत की जांच सीबीआई द्वारा की जा रही है. वहीं उनके प्रशंसक अपनी सांस थामकर उनके मौत के रहस्य को जानने की प्रतीक्षा कर रहे हैं. हो सकता है कि सुशांत पर और अधिक किताबें आएंगी. ऐसे में बस आशा की जा सकती है कि उन पर बेहतर शोध किया जाए.

(इनपुट-आईएएनएस)

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