हैदराबाद :'ओ दूर के मुसाफिर...हमको भी साथ ले ले...हम रह गए अकेले' 'ट्रेजडी किंग' दिलीप कुमार अभिनीत फिल्म 'उड़न खटोला' (1955) का यह दर्दभरा गाना मोहम्मद रफी की रह-रहकर उनके फैंस को याद दिलाता रहता है. रफी साहब ने हिंदी सिनेमा पर अपनी पार्श्व गायकी से अमिट छाप छोड़ी है. हिंदी सिनेमा के दिवंगत पार्श्व गायक मोहम्मद रफी की 24 दिसंबर को 97वीं जयंती (Mohammad Rafi Birth Anniversary) है. इस मौके पर जानेंगे देश के इस अनमोल गायक से जुड़ीं कुछ खास बातों के बारे में..
मोहम्मद रफी साहब का जन्म 24 दिसंबर 1924, को कोटला सुल्तान सिंह, (अमृतसर में एक गांव) पंजाब में हुआ था.
पंजाब में पैदा होने के बाद वह परिवार संग लाहौर (पाकिस्तान) में शिफ्ट हो गए थे. मोहम्मद रफी का निक नेक फीको था.
13 साल की उम्र में रफी साहब ने लाहौर में पहली बार अपनी गायकी का हुनर दिखाया था.
1944 में मोहम्मद रफी ने लाहौर में जीनत बेगम के साथ ड्यूट सॉन्ग 'सोनिये नी, हीरिये नी' से अपने गायन की शुरुआत की थी. इसके बाद रफी साहब को ऑल इंडिया रेडियो (लाहौर) ने गाने के लिए आमंत्रित किया था.
मोहम्मद रफी ने 1945 में फिल्म 'गांव की गोरी' से हिंदी फिल्मों में डेब्यू किया था.
1948 में महात्मा गांधी की राजनीतिक हत्या पर मोहम्मद रफी ने हुस्नलाल भगतराम और राजेंद्र कृष्णा संग मिलकर रातों-रात गीत 'सुनो-सुनो ऐ दुनियावालों, बापूजी की अमर कहानी' तैयार किया था.
रफी साहब का यह गाना सुन तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू बहुत प्रभावित हुए थे और उन्होंने रफी को यह गाना गाने के लिए अपने घर बुला लिया था.
1948 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने रफी को रजत पदक से सम्मानित किया था.
1967 में भारत सरकार ने मोहम्मद रफी को पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया था.