मुंबईः 'प्यार की न कोई परिभाषा होती है और न ही कोई सीमा', यही कहावत मणि रत्नम की फिल्मों का पर्याय है. सालों से, उन्होंने ऐसी अनोखे किस्म की प्रेम कहानियां सुनाईं जिसने लाखों दिलों पर छाप छोड़ी है. उन्होंने स्टोरीटेलिंग के अपने अद्भुत टैलेंट से सिल्वर स्क्रीन पर प्यार के सच्चे मायने को पेश किया और उसकी परिभाषा ही बदल कर रख दी.
रत्नम ने अपनी ज्यादातर फिल्मों का स्क्रीनप्ले खुद लिखा है. फिल्म निर्माता की तारीफ एक कमाल की कास्ट चुनने के लिए भी की जाती है. एक पुराने इंटरव्यू में रत्नम ने दावा किया था, 'मैं वो निर्देशक नहीं हूं जो परफॉर्म करता हूं और दिखाता हूं. मैं अपने एक्टर्स से रोल और सीन्स पर चर्चा करता हूं और उन्हें खुद ही उसे जिंदा करने देता हूं. और यही बात मणि रत्नम को खास और अलग बनाती है.
अपने करियर की शुरुआत से ही, उनके काम को तकीनीकी कुशलता के लिए सराहा गया, जिनमें सिनेमेटोग्राफी, आर्ट डायरेक्शन, एडिटिंग और बैकग्राउंड स्कोर अहम डिपार्टमेंट रहे हैं. जैसे-जैसे उनका करियर आगे बढ़ा, उन्होंने दर्शकों और क्रिटिक्स से कई बार तारीफ हासिल की. फिल्म निर्माता के साथ काम करने वाले संतोष सिवान का कहना था कि 'कोई भी कैमरामैन सिर्फ उनके साथ काम करके उनकी स्किल्स को हासिल कर सकता है' और उनकी फिल्मों को 'मुश्किल' करार दिया था.
उनके करियर पर ओवरऑल नजर डालें तो, कुछ ऐसी फिल्में हैं जो प्यार को अलग अंदाज से सेलिब्रेट करती हैंः
दिल से
1998 में उनकी 'टेरिरिज्म ट्रायोलॉजी' का तीसरा पार्ट आया, जिसका नाम था 'दिल से.' फिल्म में शाहरुख खान और मनीषा कोइराला लीड में थे. फिल्म में एक नौजवान रेडियो प्रेजेंटर आदमी और रहस्यमयी साथ ही खतरनाक औरत के बीच के रिश्ते को दिखाया गया है. दोनों को एक दूसरे से प्यार होने के बाद, अपने अतीत की वजह से महिला अपनी भावनाओं को दबाती रहती है. एक बार फिर साउंडट्रैक, जिसे एआर रहमान ने कंपोज किया था, लोगों की जुबान पर चढ़ गया. 'दिल से' ने विदेशों में भी कामयाबी हासिल की. कई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में स्क्रीनिंग हुई और अवॉर्ड भी जीता.
रोजा
1992 की भारतीय तमिल भाषा की रोमांटिक-थ्रिलर फिल्म जिसे मणि रत्नम ने लिखा और निर्देशित किया था. इसमें अरविंद स्वामी और मधू लीड रोल्स में थे. इसमें एक साधारण लड़की रोजा की कहानी है जो तमिलनाडु के एक गांव से ताल्लुक रखती है, लेकिन अपने पति ऋषि कुमार को ढूंढने के लिए किसी भी हद तक चली जाती है, जिसे जम्मू और कश्मीर में एक अंडरकवर मिशन के दौरान लड़ाकों द्वारा अगवा कर लिया जाता है. फिल्म का थीम, हिंदू महाकाव्य के किरदार सावित्री और सत्यवान के रिश्ते पर आधारित है. फिल्म थिएटर्स में अच्छी खासी चली और उसे दर्शकों से भी काफी सराहना मिली. फिल्म ने तीन नेशनल अवॉर्ड जीते, जिसमें नेशनल इंटीग्रेशन का बेस्ट फिल्म अवॉर्ड भी था.
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